DOORDARSHAN पर ‘महाभारत’ के बाद ‘विष्णु पुराण’ धारावाहिक का आगमन
DD BHARATI पर कृष्ण सहित विष्णु के दशावतार में पुन: छाएँगे नितिश भारद्वाज
आलेख : कन्हैया कोष्टी
अहमदाबाद (14 मई, 2020)। सृष्टि में पंचमहाभूत हैं, जिनमें पृथ्वी, जल, आकाश, अग्नि एवं वायु का समावेश होता है, परंतु क्या आप जानते हैं कि जिसे हम पृथ्वी कहते हैं, उसका नाम पृथ्वी कैसे पड़ा ? भूमि, जल एवं अग्नि को धारण करने वाले, वायु, आकाश व अंतरिक्ष के बीच धुरि पर घूमने वाला गोले को संस्कृत एवं हिन्दी सहित अधिकांश भारतीय भाषाओं में पृथ्वी क्यों कहा जाता है ? इतना ही नहीं, वर्तमान विश्व में 195 देशों में से भारत में जन्म लेना क्यों देवताओं से भी अधिक सौभाग्यशाली माना गया है ? भारतीय होना क्यों गर्व की बात है ?
इन सभी प्रश्नों के उत्तर हैं विष्णु पुराण (VISHNU PURAN) में। अनादिकाल से चली आ रही सनातन भारतीय संस्कृति की पूंजी 18 पुराण, 4 वेद और उसकी उपनिषदीय शाखाएँ हैं, जिनमें विज्ञानयुक्त ज्ञान का भंडार पड़ा हुआ है। इन पुराणों-शास्त्रों में भव्य भारत की झलक है। यद्यपि आज हम बात करने जा रहे हैं 18 पुराणों में से एक विष्णु पुराण की, परंतु आपको इन प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए इस विष्णु पुराण को पढ़ने की आवश्यकता नहीं है। आपको केवल दूरदर्शन (DOORDARSHAN) के डीडी भारती (DD BHARATI) चैनल पर 14 मई गुरुवार सायं 7.00 बजे से आरंभ हो रहे ‘विष्णुपुराण’ को देखना होगा।
दूरदर्शन कोरोना संकट (CORONA CRISIS) एवं लॉकडाउन (LOCKDOWN) के बीच भारतीय संस्कृति आधारित ‘रामायण’ (RAMAYAN) एवं ‘महाभारत’ (MAHABHARAT) जैसे कई धारावाहिकों से अपनी धाक जमा चुका दूरदर्शन अब ‘विष्णुपुराण’ (VISHNU PURAN) के साथ दर्शकों के बीच अपनी सुदृढ़ उपस्थिति दर्ज करा रहा है।
प्रसार भारती (PRASAR BHARATI) की ओर से किए गए TWEET के अनुसार निर्माता बी. आर. चौपड़ा (B. R. CHOPRA) के पुत्र रवि चौपड़ा (RAVI CHOPRA) निर्देशित विष्णु पुराण धारावाहिक का पुन: प्रसारण दूरदर्शन के डीडी भारती (DD BHARATI) चैनल पर 14 मई गुरुवार सायं 7.00 बजे से प्रारंभ होगा। डीडी भारती पर बी. आर. चौपड़ा के ही धारावाहिक ‘महाभारत’ (MAHABHARAT) का बुधवार सायं समापन हुआ और ‘विष्णुपुराण’ धारावाहिक उसी के स्थान पर प्रसारित हो रहा है, जिसमें आपको पृथ्वी, भारत, भारतीय होने के महत्व व अर्थ सहित प्रचूर ज्ञान जानने को मिलेगा। महाभारत की भाँति ही विष्णुपुराण धारावाहिक में भी भगवान विष्णु एवं उनके कृष्ण सहित सभी दस अवतारों में नितिश भारद्वाज (NITISH BHARDWAJ) की दिखाई देंगे।
वर्तमान आधुनिक युग में हमें आश्रय देने वाले स्थान को हम धरती, भूमि, ज़मीन या LAND, गाँव, तहसील, क्षेत्र, उप नगर, नगर, महानगर, जिला, राज्य या राष्ट्र कहते हैं, परंतु जब हम उसी आश्रय स्थान को पृथ्वी (EARTH) कह देते हैं, तो सारे छोटे-बड़े पर्याय समाप्त हो जाते हैं और हम एक विराट विश्व का हिस्सा बन जाते हैं, परंतु क्या आप जानते हैं कि यह पृथ्वी शब्द कहाँ से आया ? अंतरिक्ष में अपनी धुरि पर घूमने वाले गोल गोले को पृथ्वी क्यों कहा जाता है ?
धरती के प्रथम राजा पृथु से उत्पन्न हुआ पृथ्वी शब्द
विष्णु पुराण की रचना ऋषि पराशर ने की थी। 18 पुराणों में सबसे छोटे विष्णु पुराण में 7000 श्लोक हैं। विष्णु पुराण में सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर कलियुग तक की बातें हैं, तो विशेष रूप से विष्णु पुराण भगवान विष्णु के दस अवतारों पर आधारित है। हम जिस धरती पर रहते हैं, उसे पृथ्वी क्यों कहा जाता है ? इसका उल्लेख विष्णु पुराण में है। विष्णु पुराण के अनुसार साधुशीलवान अंग के पुत्र का नाम वेन था, जो दुष्ट वृत्ति का था। त्रस्त ऋषियों ने हुंकार-ध्वनि से वेन को मार डाला। वेन नि:संतान ही मर गया। उस समय अराजकता के निवारण के लिए वेन की भुजाओं का मंथन किया गया, जिससे स्त्री अर्चि एवं पुरुष पृथु का जन्म हुआ। दोनों पति-पत्नी हुए। अर्चि व पृथु को भगवान विष्णु व लक्ष्मी का अंशावतार माना जाता है। पृथु ने धरती को समतल कर उसे उपज योग्य बनाया। इसीलिए धरती का नाम पृथ्वी रखा गया।
भारत में अवतरण व भारतीय होना परम सौभाग्य क्यों ?
विष्णु पुराण में भारत वर्ष को कर्मभूमि कहा गया है।
विष्णु पुराण के उपरोक्त श्लोक का अर्थ है, ‘भारत भूमि से ही स्वर्ग, मोक्ष, अंतरिक्ष या पाताल लोक जाया जा सकता है। भारत देश के अतिरिक्त किसी अन्य भूमि पर मनुष्यों के लिए कर्म का कोई विधान नहीं है।’
विष्णु पुराण में भारतीय कर्मभूमि की भौगोलिक रचना का उल्लेख करने वाला श्लोक है
‘उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् । वर्ष तद्भारतं नाम भारती यत्र संतति ॥ [3]’
उपरोक्त श्लोक का अर्थ है ‘समुद्र के उत्तर में एवं हिमालय के दक्षिण में जो पवित्र भूभाग स्थित है, उसका नाम भारत वर्ष है। उसकी संतति भारतीय कहलाती है।’ विष्णु पुराण में भारत भूमिक की वंदना करने वाला यह पद भी है :
गायन्ति देवा: किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारत भूमिभागे। स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते भवन्ति भूय: पुरुषा: सुरत्वात्। कर्माण्ड संकल्पित तवत्फलानि संन्यस्य विष्णौ परमात्मभूते। अवाप्य तां कर्ममहीमनन्ते तस्मिंल्लयं ये त्वमला: प्रयान्ति ॥[4]
अर्थात ‘देवगण निरन्तर यही गान करते हैं कि जिन्होंने स्वर्ग और मोक्ष के मार्ग् पर चलने के लिए भारत भूमि में जन्म लिया है, वे मनुष्य हम देवताओं की अपेक्षा अधिक धन्य तथा भाग्यशाली हैं। जो लोग इस कर्मभूमि में जन्म लेकर समस्त आकांक्षाओं से मुक्त अपने कर्म परमात्मा स्वरूप श्री विष्णु को अर्पण कर देते हैं, वे पाप रहित होकर निर्मल हृदय से उस अनन्त परमात्म शक्ति में लीन हो जाते हैं। ऐसे लोग धन्य होते हैं।
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