Wednesday, March 19, 2025
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दीर्घदृष्टा दूरदर्शन : तो यह सिद्ध हो गया कि अश्लीलता-अभद्रता के बिना भी TRP बढ़ाई जा सकती है…

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DEMAND की आड़ में ‘भारत’ के ‘पूरब’ को ‘पश्चिम’ बना डाला

रामायण, महाभारत के बाद कृष्णा ने भी लगाई संस्कारों पर मुहर

छोटे पर्दे पर 80-90 के दशक के पीछे पीएम मोदी की आध्यात्मिक सोच

DD NATION तथा DD BHARATI के लौटे ‘अच्छे दिन

रामायण के दूसरे एपिसोड से आरंभ हो गई विज्ञापनों की बौछार

अरबों-खरबों की कमाई करने वाले निजी मनोरंजन चैनलों में उदासी

विशेष टिप्पणी : कन्हैया कोष्टी
अहमदाबाद (24 अप्रैल, 2020)। हिन्दी फिल्म जगत (BOLLYWOOD) में महान भारत, भारतीय संस्कृति, भारतीय जवान और भारतीय किसान का प्रतिनिधित्व करने वाले मनोज कुमार ने 70 के दशक में ‘पूरब और पश्चिम’ फिल्म बनाई थी। फिल्म के नाम से ही सहज अनुमान हो आता है कि मनोज कुमार ने फिल्म में पश्चिमी संस्कृति के आगे भव्य भारतीय संस्कृति की महानता प्रस्थापित करने का प्रयास किया था। ‘पूरब और पश्चिम’ फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने वाले मनोज कुमार का नाम ही ‘भारत’ था और फिल्म में जब-जब भारत का नाम लिया जाता, ऐसा लगता कि मानो मनोज कुमार नहीं, वरन् भारत के संदर्भ में संवाद बोले जा रहे हैं।
यद्यपि बॉलीवुड में भारत की महान परंपराओं, प्राचीन ऋषि-मुनियों, संतों-महापुरुषों से लेकर कई सामाजिक विषयों पर फिल्में बनती रहीं, परंतु ‘पूरब और पश्चिम’ के बाद मानो मनोज कुमार और ‘भारत’ एक-दूसरे का पर्याय बन गए। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में पश्चिमी संस्कृति का संक्रमण तीव्रता से बढ़ रहा था, जिसे रोकने के लिए ही मनोज कुमार ने ‘पूरब और पश्चिम’ फिल्म बनाई थी। फिल्म ने सफलता के झंडे गाड़े, परंतु मनोज कुमार सांस्कृतिक संक्रमण रोकने में विफल रहे और धीरे-धीरे हिन्दी फिल्म जगत में आधुनिकता तथा दर्शकों की मांग की आड़ में वह सब कब कुछ परोसा जाने लगा, जिसे ‘पूरब और पश्चिम’ ने निषिद्ध बताया था।
वैसे आज मनोज कुमार का जन्म दिवस नहीं है और न ही ‘पूरब और पश्चिम’ की रिलीज़ डेट। इसीलिए हम सीधे विषय पर आते हैं। 80 के दशक से बॉलीवुड फिल्मों में आधुनिकता व डिमांड के नाम पर अभद्रता, अश्लीलता, फूहड़पन, नग्नता, अंग प्रदर्शन की ऐसी आंधी चली कि सेंसर बोर्ड भी निर्माता-निर्देशकों के प्रभाव में हर तरह के दृश्यों को नि:संकोच स्वीकृति देने लगा। फिल्मों का यह साया तत्कालीन समय में देश के एकमात्र मनोरंजन चैनल DOORDARSHAN (DD) पर नहीं पड़ा। डीडी ने भारतीय संस्कृति की गरिमा बनाए रखी और 80-90 के दशकों में बुनियाद, श्रीमान-श्रीमती, विक्रम वैताल, तमस, हम पाँच, रजनी, सत्यान्वेषी व्योमकेश बख़्शी, गोदान, चाणक्य जैसे उत्कृष्ट धारावाहिकों का सिलसिला शुरू किया और फिर रामानंद सागर कृत रामायण ने दूरदर्शन पर भव्य भारत की गरिमा तथा गौरव का महिमागान किया। रामायण की रिकॉर्ड सफलता के बाद तो धार्मिक धारावाहिकों की बाढ़-सी आ गई और महाभारत, श्री कृष्णा तथा पश्चिमी सुपर हीरो के भारतीय संस्करण शक्तिमान जैसे धारावाहिकों ने भी बहुत प्रशंसा पाई।

लॉकडाउन ने डीडी के बंद ताले खोल दिए

90 के दशक में अचानक छोटे पर्दे पर विदेशी व देशी निजी चैनलों का धमाकेदार पदार्पण हुआ और इसके साथ ही दूरदर्शन के दिन लदने लगे। निजी चैनलों ने भारतीय दर्शकों को भारत की आत्मा समान संस्कृति व गाँवों को छोटे पर्दे से लुप्त कर दिया। दर्शक चकाचौंध हो गए। निजी चैनलों के धारावाहिकों में बड़े-बड़े महलों, हवेलियों, सजी-धजी महिलाओं, घर की कानाफूसी जैसी चीज़ें देख कर दर्शकों पर आधुनिकता का चोला ओढ़े इन धारावाहिकों ने कब्ज़ा जमा लिया। दूरदर्शन चूँकि सरकारी मीडिया था, इसलिए निजीकरण की आंधी में भी टिका रहा, परंतु निजी चैनलों ने सोचा नहीं होगा, वरन् कल्पना भी नहीं की होगी कि कभी ऐसे दिन भी आएँगे, जब दम तोड़ता दूरदर्शन अचानक तेज़ी में आ जाएगा। कोरोना (CORONA-COVID 19) महामारी पर नियंत्रण के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गत 24 मार्च को समग्र देश में लॉकडाउन (LOCKDOWN) की घोषणा की और इसके साथ ही दूरदर्शन का नेतृत्व यानी प्रसार भारती सक्रिय हो गया। प्रसार भारती ने लॉकडाउन में लोगों को घरों में बनाए रखने के लिए सबसे पहले सर्वाधिक लोकप्रिय रामायण धारावाहिक का पुन: प्रसारण शुरू किया। इसके बाद महाभारत, शक्तिमान, चाणक्य, व्योमकेश बख़्शी, चाणक्य, बुनियाद जैसे सफल धारावाहिक भी छोटे पर्दे पर लौट आए और दूरदर्शन की TRP में अनेक गुना उछाल आ गया।

दूरदर्शन पर विज्ञापन, निजी चैनलों पर सन्नाटा

लॉकडाउन के दौरान 80-90 के दशकों के लोकप्रिय धारावाहिकों के पुन: प्रसारण का सिलसिला रामायण के साथ शुरू हुआ। सबको याद होगा कि पहले दिन रामायण के एक साथ तीन एपिसोड बिना किसी विज्ञापन के दिखाए गए, परंतु अगले ही दिन से रामायण के बीच विज्ञापनों का सिलसिला शुरू हो गया। केवल रामायण ही नहीं, दूरदर्शन पर पुन: प्रसारित होने वाले लगभग सभी धारावाहिकों पर विज्ञापनों की बाढ़ आ गई। इसका कारण था दूरदर्शन की टीआरपी में आया उछाल। विज्ञापन दाता कंपनियों ने भी स्थिति को भाँप लिया और उन निजी चैनलों से मुँह मोड़ लिया, जो शूटिंग नहीं होने के कारण कई वर्तमान धारावाहिकों के पुराने एपिसोड दिखा रहे थे। ताज़ा-ताज़ा देखे गए एपिसोड के पुन: प्रसारण से निजी चैनलों की टीआरपी में भारी गिरावट आई और दूरदर्शन को 25-30 साल पुराने धारावाहिकों के लिए पुराने (देख चुके) तथा नए दर्शक आसानी से मिल गए, जिससे दूरदर्शन के दोनों मनोरंजन चैनलों डीडी नेशनल व डीडी भारती पर विज्ञापनों तथा रुपयों की बौछार होने लगी। दूसरी तरफ अरबों-खरबों की कमाई करने वाले निजी चैनलों पर सन्नाटा पसर गया। ऐसा नहीं है कि निजी चैनलों ने मोटी कमाई के लिए केवल आधुनिकता व फूहड़पन का ही सहारा लिया। निजी स्वार्थ के लिए कुछ निजी चैनलों ने रामायण, महाभारत जैसे धारावाहिकों को आधुनिक अंदाज़ में जिस प्रकार प्रस्तुत किया, उसे भारतीय दर्शक पचा नहीं सके। यह बात इसलिए भी सही सिद्ध होती है कि आज भी लोगों को रामानंद सागर की रामायण और बीआर चौपड़ा की महाभारत ही भाती है।

दूरदर्शन ने सिद्ध किया, ‘पूरब आख़िर पूरब है’

दूरदर्शन ने रामायण, महाभारत, चाणक्य, उपनिषद् गंगा जैसे भव्य भारत की प्राचीन संस्कृति, संस्कारों, धर्म, नीति, न्याय, आदर्श का शुद्ध व आडंबरमुक्त ज्ञान देने धारावाहिकों को मिली सफलता से यह सिद्ध कर दिया, ‘पूरब आख़िर पूरब है’। बॉलीवुड की आधुनिक व दर्शकों की डिमांड की आड़ में अश्लीलता व फूहड़पन दिखाने वाली फिल्मों तथा उसी का अनुकरण करने वाले निजी चैनलों के अनेक धारावाहिकों के पाश्चात्य सांस्कृतिक आक्रमण के पश्चात् भी भारतीय दर्शक यदि दूरदर्शन पर पुन: प्रसारित हो रहे धारावाहिकों को टीआरपी दे रहे हैं, तो इसका स्पष्ट अर्थ यही है कि आधुनिकता व दर्शकों की मांग की आड़ में अश्लीलता, अभद्रता, नग्नता, अंग प्रदर्शन, पश्चिमी संस्कृति को बढ़ावा देने वाली विषय-वस्तु से रहित फिल्में व धारावाहिकें भी बढ़िया कमाई और टीआरपी दिला सकती हैं। डीडी नेशनल और डीडी भारती की व्यूअरशिप महत्वपूर्ण स्लॉट में प्रसारित होने वाले इन धारावाहिकों के दौरान कई गुना बढ़ चुकी है।

मोदी ने तुणीर का अंतिम बाण ‘श्री कृष्ण’ भी चला दिया

कहा जा सकता है कि दूरदर्शन पर पुराने धारावाहिकों के पुन: प्रसारण के इस पूरे आइडिया के पीछे कहीं न कहीं हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आध्यात्मिक विचारधारा व आध्यात्मिक चिंतन जुड़े हुए हैं। मोदी वैसे भी एक संन्यासी सम्राट की तरह शासन चलाते हैं। न घर, न परिवार। पूरा देश ही घर और परिवार। यही मोदी का चिंतन है। यही मोदी की विचारधारा है। मोदी की विचारधारा में वसुधैव कुटुम्बकम् सर्वोच्च है, जिसका संबंध 10,000 वर्ष पुरानी भारतीय संस्कृति से है, जिसमें भगवान राम, भगवान कृष्ण से लेकर प्राचीन ऋषि-मुनि, महापुरुष, गरिमामय भारत, भव्य भारत, वैभवशाली भारत शामिल है। यही कारण है कि पुरानी धारावाहिकों की सूची में सर्वोच्च प्राथमिकता रामायण को दी गई, तो दूसरी प्राथमिकता महाभारत को दी गई। इतना ही नहीं, मोदी ने चाणक्य तथा उपनिषद् गंगा जैसे आध्यात्मिक धारावाहिकों को भी जगह दी, जिससे नई पीढ़ी को आधुनिकता के साथ-साथ भव्य भारत की जड़ों से जोड़ा जा सके। इस महान प्रयास के अंतर्गत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दूरदर्शन के तुणीर के अंतिम बाण ‘श्री कृष्ण’ के पुन: प्रसारण की घोषणा भी करवा दी, जिसकी प्रसारण तिथि अभी घोषित नहीं हुई है। अन्य सामाजिक धारावाहिक भी इसी महान भारतीय संस्कृति के द्योतक हैं, जिनका पुन: प्रसारण किया जा रहा है।
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