Sunday, March 23, 2025
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विधना तेरे लेख… : कौन था वह ‘राम’, जिसका ‘राज-द्रोह’ बन गया ‘शंकर’ के लिए ‘जयकिशन’ वरदान ?

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विख्यात संगीतकार शंकर (जयकिशन) की पुण्यितिथि पर विशेष

विधाता ने यूँ बनाई हैदराबादी शंकर व सूरती जय किशन की जोड़ी

आलेख : कन्हैया कोष्टी
अहमदाबाद (26/04/2020)। शीर्षक पढ़ कर आश्चर्य हुआ न…! इन दिनों पूरे देश पर रामानंद सागर के अत्यंत लोकप्रिय धारावाहिक ‘रामायण’ तथा ‘उत्तर रामायण’ का धार्मिक प्रभाव छाया हुआ है। विशेष रूप से इस धारावाहिक में विख्यात गायक दिवंगत रवीन्द्र जैन के सुर में गूंजते कई गीत तथा दोहे लोगों के मनोमस्तिष्क एवं जिह्वा पर रम गए हैं।
आज हम रामायण-उत्तर रामायण धारावाहिक के अनेक गीतों में से एक गीत की पंक्ति ‘विधना तेरे लेख किसी के…. समझ न आते हैं…’ को सार्थक करने वाली एक सत्य घटना पर प्रकाश डालने जा रहे हैं। रामायण में यह पंक्ति पग-पग पर साकार होती हैं। जिस अवतारी पुरुष राम का अगली सुबह अयोध्या के सिंहासन पर राजतिलक होना था, उसी राम को इस ‘विधना’ यानी विधि के विधान, भाग्य या प्रारब्ध के अधीन होकर वनगमन करना पड़ा। जिस राम को 14 वर्षों के बाद राज सुख मिला, उसी राम से इस ‘विधना’ ने पत्नी सुख छीन लिया।

कोरोना व लॉकडाउन के बीच इसलिए छेड़ा शंकर-जयकिशन राग

कहने का तात्पर्य यही है कि भाग्य या प्रारब्ध के वश प्रत्येक मनुष्य को सुख एवं दु:ख भोगने पड़ते हैं। यही भाग्य यदि जीवन में कृष्ण पक्ष का घोर अंधकार लेकर आता है, तो यही भाग्य शुक्ल पक्ष का प्रकाश भी लाता है। कुछ ऐसा ही हुआ था हिन्दी फिल्म जगत के महान संगीतकार युगल शंकर-जयकिशन के साथ। कोरोना वायरस (CORONA VIRUS) वायरस से फैली कोविड 19 (COVID 19) महामारी तथा लॉकडाउन (LOCKDOWN) के बीच शंकर-जयकिशन की जोड़ी का हम स्मरण इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि शंकर अर्थात् शंकर सिंह रघुवंशी की आज 33वीं पुण्यितिथि है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि शंकर भगवान श्री राम के रघुवंशी कुल के ही वंशज थे, परंतु आपको यह सुखद् संयोग जान कर आश्चर्य होगा कि रघुवंशी शंकर को महान संगीतकार बनाने में एक ‘राम’ के ‘राज-द्रोह’ ने ही मुख्य भूमिका निभाई थी। यह ‘विधाता राम’ का ही चमत्कार था कि तबला वादक शंकर तथा हार्मोनियम वादक जयकिशन पंचाल का न केवल मिलन कराया, वरन् उन्हें पहला BREAK भी दिलाया और फिर इस संगीतकार युगल ने भारतीय सिनेमा जगत (BOLLYWOOD) में सुरीले संगीत का महान राग छेड़ा तथा करोड़ों भारतीयों के हृदय पर वर्षों तक शासन किया।

शिव मंदिर के तबला वादन ने मोह लिया शंकर को

शंकर की 33वीं पुण्यतिथि पर हम आपको बताने जा रहे हैं उनके महान संगीतकार युगल शंकर-जयकिशन बनने के पीछे की कथा। 15 अक्टूबर, 1922 को हैदराबाद में रामसिंह रघुवंशी के घर जन्मे शंकर को बचपन में क़ुश्ती एवं कसरती बदन का शौक़ था, परंतु थोड़ा बड़े हुए तो घर के पास स्थित शिव मंदिर में पूजा-आरती में बजने वाले तबले ने उन्हें मोह लिया। फिर तो शंकर पर उस्ताद नसीर ख़ान की निगाह पड़ी और शंकर उनके शागिर्द बन गए। शंकर ने तबला वादन में इतनी महारत हासिल कर ली कि हैदराबाद में एक बार तवायफ़ के कोठे पर पहुँच गए और ग़लत ढंग से बजाए जा रहे तबले को सफाई से बजा कर अपनी योग्यता का परिचय दिया। इसके बाद शंकर मास्टर सत्यनारायण की नाट्य मंडली में नौकरी की और फिर पकड़ ली बम्बई (मुंबई) की राह। यद्यपि व्यायाम शंकर के जीवन का हिस्सा बना रहा।

जब हुआ शंकर-जय किशन का मिलन

मुंबई पहुँच कर भी शंकर ने व्यायाम बंद नहीं किया और ऑपेरा हाउस थियेटर के पास स्थित व्यायामशाला में कसरत करने जाने लगे। इसी व्यायामशाला में शंकर की भेंट तबला व ढोलकवादक दत्ताराम से हुई। शंकर ने दत्ताराम से तबला-ढोलक वादन का सूक्ष्म प्रशिक्षण लिया और एक दिन ऐसा आया, जब दत्ताराम शंकर को फिल्मों में काम दिलाने के लिए तत्कालीन प्रसिद्ध गुजराती फिल्मकार चंद्रवदन भट्ट के पास ले गए। चंद्रवदन भट्ट शंकर को लेकर पृथ्वीराज कपूर के पृथ्वी थियेटर ले गए। संयोग से उसी दिन सूरती लाला हारमोनियम वादक जयकिशन भी काम की खोज में पृथ्वी थियेटर पहुँचे हुए थे। दोनों प्रतीक्षा कर रहे थे और प्रतीक्षा की इन्हीं क्षणों में शंकर तथा जयकिशन के बीच पहला परिचय हुआ। सौभाग्य से शंकर व जयकिशन दोनों को पृथ्वी थियेटर में क्रमश: तबला वादक व हारमोनियम वादन प्रशिक्षक के रूप में नौकरी मिल गई। शंकर-जयकिशन ने पृथ्वी थियेटर की फिल्म ‘पठान’ में अभिनय भी किया।

राम का विश्वासघात बन गया वरदान

कदाचित यह विधि का ही लेख था कि पृथ्वी थियेटर में वर्षों से काम कर रहे संगीतकार राम गांगुली की मति भ्रष्ट हुई। पृथ्वी थियेटर में काम करते हुए शंकर-जयकिशन तत्कालीन महान अभिनेता राज कपूर के भी काफी क़रीब आ चुके थे। जब राज कपूर ‘बरसात’ फिल्म का निर्माण कर रहे थे, तभी उन्हें पता चला कि फिल्म के लिए बनाई गई एक धुन का राम गांगुली एक अन्य फिल्म के लिए प्रयोग कर रहे हैं। यह पता चलते ही राज कपूर ने आपा खो दिया और उन्होंने विश्वासघाती राम गांगुली को ‘बरसात’ से बाहर का रास्ता दिखा दिया। अब तक राज कपूर शंकर-जयकिशन की प्रतिभा से परिचित हो चुके थे। इसीलिए उन्होंने ‘बरसात’ फिल्म के लिए धुन बनाने का दायित्व शंकर को सौंपा। शंकर ने ‘अम्बुआ का पेड़ है, वही मुंडेर है, मेरे बालमा, अब काहे की देर है…’। शंकर की यह धुन राज कपूर के हृदय उतर गई और ‘बरसात’ में संगीतकार के रूप में राम गांगुली के स्थान पर शंकर-जयकिशन को BREAK दे दिया। शंकर की बनाई ‘अम्बुआ का पेड़…’ वाली धुन ही ‘बरसात’ फिल्म में ‘जिया बेक़रार है, छायी बहार है, आ जा मोरे बालमा, तेरा इंतज़ार है…’ गीत बनी और सुपरहिट सिद्ध हुई। इतना ही नहीं, ‘बरसात’ के शीर्षक गीत ‘बरसात में… हम से मिले तुम रे सजन… तुम से मिले हम… बरसात में…’ भी सुपरहिट हुआ। इस फिल्म के सभी गीत हिट हुए। इस फिल्म के साथ ही हिन्दी फिल्म जगत में एक सफल पंचमंडली तैयार हुई, जिसमें निर्माता-निर्देशक-अभिनेता राज कपूर, संगीतकार शंकर-जयकिशन, गीतकार शैलेन्द्र तथा गायक मुकेश शामिल थे। इन पाँचों के सुगम संगम ने अनेक फिल्मों को सफलता के शिखर पर पहुँचाया।

हैदराबादी शंकर तथा सूरती जयकिशन ने मंत्रमुग्ध कर डाला

हैदराबादी शंकर तथा सूरत (गुजरात) के जयकिशन पंचाल ने राज कपूर की फिल्मों में शानदार संगीत देकर न केवल फिल्मों की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, वरन् भारतीय संगीत रसिकों को भी वर्षों तक मंत्रमुग्ध किया। यह विधि का ही लेख था कि भारत व फिल्म जगत में शंकर-जयकिशन के नाम से जोड़ी बनी, अन्यथा जयकिशन का नाम तो केवल जय था। पिता डाह्याभाई पंचाल के तीन पुत्र थे, जिनमें जय का नाम उन्हें बहुत छोटा लगता था। इसी कारण पिता डाह्याभाई ने जय में किशन जोड़ दिया और इस प्रकार जय जयकिशन हो गए तथा शंकर के साथ शंकर-जयकिशन के रूप में प्रसिद्ध हुए।

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