हमारे देश के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी वैसे तो हर क्षेत्र में अपने नाम का बोलबाला बनाये हुए थे, चाहे वो वकालत हो या आध्यात्म, चाहे वो लीडरशिप हो या अहिंसा. महात्मा गाँधी को विश्व अहिंसक या अहिंसा का पुजारी कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. परन्तु फिर भी न जाने क्यों महात्मा गाँधी को अंहिसा और दयाभावना के लिए किसी पुरस्कार से सम्मानित नहीं किया गया, आइये जानते है आखिर क्यों ?
नोबल शांति पुरस्कार में घोषणा पर नहीं मिला अवार्ड :
नोबेल पुरस्कार विश्व के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक है और यह विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्धियों के आधार पर प्रदान किया जाता है। अल्फ्रेड नोबेल की विशेष इच्छा थी कि इन पुरस्कारों के माध्यम से वैज्ञानिक और क्रांतिकारी कार्यों को प्रोत्साहित किया जाए, जिनसे मानव समाज को लाभ हो सकता है।
ऐसे में नोबेल शांति पुरस्कार को मानवता के प्रासंगिक कार्यों के लिए प्रदान किया जाता है। महात्मा गांधी को कई बार नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया था, लेकिन उन्हें इस पुरस्कार से कभी सम्मानित नहीं किया गया। उनके नाम 1937, 1938, 1939, और 1947 में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किए गए थे, लेकिन कुछ कारणों से उन्हें पुरस्कार से वंचित किया गया।
नोबल पुरस्कार नहीं दिए जाने का पहला कारण :
कुछ तथ्यों की माने तो उस वक्त नोबेल कमेटी गाँधी जी को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित करके अंग्रेजों की नाराजगी नहीं देखना चाहती थी। कहा जाता है की उस समय अंग्रेजों के खिलाफ महात्मा गाँधी का आन्दोलन तेजी से चल रहा था और इस स्थिति में अगर वो गाँधी जी ko पुरस्कार प्रदान करती तो अंग्रेज़ इस स्थिति में नोबल पुरस्कार कमिटी के खिलाफ हो जाते.
1948 में नामांकन के बाद भी नहीं मिला पुरस्कार :
आजादी के पश्चात 1948 में क्वेकर ने गाँधी का नाम नोबेल के लिए दिया था। और शायद 1948 में महात्मा गाँधी को पुरस्कार मिल जाता लेकिन उससे पहले ही उनकी मृत्यु हो गयी।