‘नेशन फर्स्ट’ में मोदी भी ट्रंप से पीछे नहीं
ट्रंप स्वयं कह चुके हैं, ‘मोदी टफ नेगोशिएटर’
अहमदाबाद, 11 फरवरी : अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के बाद डोनाल्ड ट्रंप लगातार कठोर निर्णयों के कारण चर्चा में हैं। ट्रंप ने शपथ लेते ही कई महत्वपूर्ण निर्णय लेकर विश्व के अनेक देशों को प्रभावित किया है, जिनमें भारत भी शामिल है।
दूसरी बार शपथ लेने के बाद ट्रंप की जो सख्ती देखी जा रही है, उससे भारत में भी यह चिंता व्याप्त हो गई है कि क्या भारत-अमेरिका संबंध पहले की तरह सामान्य रह पाएंगे या फिर ट्रंप कोई नया तड़का लगाएंगे।
विदेश नीति के कई जानकार एवं राजनीतिक विश्लेषक यह कयास लगा रहे हैं कि डोनल्ड ट्रंप का दूसरा कार्यकाल दुनिया के कई देशों पर कहर बनकर टूटा है और भारत में इसका असर तब देखा गया, जब अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे 104 भारतीयों को बंधक अवस्था में मालवाहक विमान से भारत भेजा गया।
इतना ही नहीं; राष्ट्रपति का पदभार संभालते ही ट्रंप ने पूरी दुनिया को टैरिफ को लेकर अपने कठोर का संकेत भी दे दिया, जिसका भारत-अमेरिका व्यापार पर भी प्रभाव पड़ सकता है।
मोदी केमिस्ट्री से ही साधेंगे मैथेमैटिक्स
ट्रंप के धड़ाधड़ निर्णयों के बीच भारत में चारों ओर से यह प्रतिक्रिया सामने आ रही हैं कि आखिर ट्रंप-मोदी की केमिस्ट्री का क्या हुआ ? ट्रंप जब 2015 से 2020 तक राष्ट्रपति थे, तब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और ट्रंप के बीच कई मुलाक़ातें हुई थीं, जिनमें अमेरिका में हुआ ‘हाउडी मोदी’ तथा भारत में हुआ ‘नमस्ते ट्रंप’ कार्यक्रम सर्वाधिक चर्चा में रहा था।
अब जबकि डोनल्ड ट्रंप अमेरिका फर्स्ट नीति के नारे के साथ और अधिक मजबूती से राष्ट्रपति चुने गए हैं, तब मोदी के लिए ट्रंप के साथ पुनः पुरानी केमिस्ट्री बनाए रखने को बड़ी चुनौती माना जा रहा है, लेकिन मोदी की विदेश नीति से अच्छी तरह अवगत लोगों का मानना है कि मोदी-ट्रंप की मित्रता और केमिस्ट्री में कोई कमी नहीं आई है।
यह सही है कि ट्रंप ने राष्ट्रपति बनते ही चीन पर भारी टैरिफ लगाते हुए भारत को भी टैरिफ के मामले में कोई रियायत नहीं देने के संकेत दिए हैं, परंतु यह भी उतना ही सही है कि ट्रंप नरेन्द्र मोदी को अच्छी तरह जानते हैं। स्वयं ट्रंप ने वर्ष 2020 में नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम के लिए भारत यात्रा के दौरान माना था कि मोदी टफ नेगोशिएटर हैं।
ऐसे में यह मान लेना भूल होगा कि ट्रंप मोदी को हल्के में ले सकेंगे, क्योंकि यदि ट्रंप के लिए नेशन फर्स्ट है, तो मोदी भी नेशन फर्स्ट के मामले में ट्रंप से एक पग भी पीछे नहीं हैं।
ट्रंप को है मोदी का कड़वा अनुभव
डोनल्ड ट्रंप अपने पहले ही कार्यकाल में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कई कड़े निर्णयों का कड़वा अनुभव कर चुके हैं। इनमें सबसे बड़ा मुद्दा था भारत की रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम डील। अमेरिका एवं डोनल्ड ट्रंप ने भारत की रूस से इस डील का लगातार विरोध किया, परंतु मोदी ने ट्रंप की एक नहीं सुनी और अमेरिका से अच्छे संबंध बनाए रखते हुए रूस के साथ निर्भयता के साथ डील की। इतना ही नहीं; ट्रंप ने पहले कार्यकाल के दौरान अमेरिका सामानों पर टैरिफ के मुद्दे पर भी मोदी से कई बार राहत पाने का प्रयास किया, परंतु मोदी अमेरिकी दबाव में नहीं झुके। यही कारण ट्रंप ने मोदी को टफ नेगोशिएटर कहा था।
भारतीय रुख में नरमी एक हद तक
ट्रंप यदि यह मानकर बैठे हों कि पूरी दुनिया में अपनी धाक जमाते हुए वे भारत और नरेन्द्र मोदी पर भी टैरिफ सहित कई मुद्दों पर रुख को नरम करने का दबाव बना लेंगे, तो कदाचित् वे भ्रांति में होंगे। हालाँकि भारत अमेरिका के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने के लिए एक हद तक अपने रुख में नरमी ला सकता है, परंतु जहाँ तक मोदी का सवाल है, तो यह निश्चित है कि ट्रंप के लिए मोदी अभी भी टफ नेगोशिएटर ही रहेंगे।
भारतीय कूटनीति की परीक्षा
नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद 2014 से लेकर अब तक उनकी सरकार की कूटनीति की हमेशा प्रशंसा हुई है। मोदी की विदेश नीति तथा कूटनीति ने भारत के अच्छे-अच्छे दुश्मनों को शांत कर दिया है, तो कई नए दोस्त भी बनाए हैं। यह मोदी की कूटनीति ही है कि पिछले 11 वर्षों में इजराइल-हमास, रूस-यूक्रेन, अजरबैजान जैसे युद्ध हुए तथा अफगानिस्तान में तख्तापलट सहित कई उथल-पुथल हुईं, जहाँ भारत के लिए रूस या अमेरिका में से किसी एक का पक्ष लेने का धर्मसंकट था। ऐसे मौकों पर मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कुशल कूटनीति का परिचय देते हुए रूस-अमेरिका; दोनों के साथ मित्रता का संतुलन बनाए रखा और दोनों को ही अग्रिम मोर्चे पर आकर शांति का संदेश दिया। अब अमेरिका में ट्रंप की वापसी ने मोदी सरकार की कूटनीति पर फिर एक बार कसौटी में डाला है, परंतु पुराने अनुभवों से कहा जा सकता है कि मोदी फिर एक बार ट्रंप पर भारी ही पड़ेंगे।
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