Sunday, March 23, 2025
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राहुल का दाँव, कुल्हाड़ी पे पाँव : मोदी तो ‘मोदी’ ही हैं, लेकिन क्या राहुल ‘गांधी’ हैं ?

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‘उधार के गांधी’ राहुल हैं जन्मजात पारसी

महात्मा गांधी ने ‘घांडी’ को गांधी बनाया

आलेख : कन्हैया कोष्टी

अहमदाबाद, 09 फरवरी, 2024 : कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपनी राजनीतिक अपरिक्वता के लिए विख्यात हैं। उनकी इस अपरिपक्वता का नुक़सान कांग्रेस को उठाना पड़ता है। नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध गुजरात से लेकर दिल्ली तक 22 वर्षों से राजनीतिक संघर्ष कर रही कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी हर बार मोदी के विरुद्ध दाँव चलते हैं, परंतु उनका हर दाँव जैसे स्वयं ही कुल्हाड़ी पर पाँव रखने वाला सिद्ध होता है।

भारत जोड़ो यात्रा के दौरान एक के बाद कई ब्लंडर करने वाले राहुल गांधी भारत जोड़ो न्याय यात्रा में भी अपनी बचकाना हरकतों से बाज़ नहीं आ रहे हैं और ऐसी ही बातें कर रहे हैं, जिनसे अंतत: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा-BJP) तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ही लाभ हो।

जातिवाद की नाव पर राहुल का दाँव

धर्मनिरपेक्षता से जातिवाद की राजनीति की राह चल पड़े राहुल गांधी पिछले एक वर्ष से अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को न्याय दिलाने की रणभेरी बजा रहे हैं। हालाँकि उनकी यह राजनीतिक उठापटक राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में विफल सिद्ध हुई। इसके बावजूद राहुल ने ओबीसी पर राजनीति करते हुए अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक प्रकार से ‘बन बैठे ओबीसी’ या नकली ओबीसी ठहरा दिया है।

राहुल ने पहले तो सोशल मीडिया में कहा कि नरेन्द्र मोदी जन्मजात ओबीसी नहीं हैं। इसके बाद उन्होंने ओडीशा में एक जनसभा में कहा कि गुजरात की भाजपा सरकार ने वर्ष 2004 में मोदी जाति को ओबीसी में शामिल किया। इस प्रकार मोदी जन्म से ओबीसी नहीं हैं।

हालाँकि राहुल के इस दावे पर भाजपा की ओर से कई प्रकार के पलटवार करते हुए दावे किए गए कि नरेन्द्र मोदी के गुजरात का मुख्यमंत्री बनने से पहले ही गुजरात में मोदी जाति ओबीसी में शामिल थी। भाजपा के कई नेताओं ने कई तरह के प्रमाण देते हुए राहुल के इस दावे को ख़ारिज कर दिया कि मोदी ने मुख्यमंत्री बनने के बाद मोदी जाति को ओबीसी में शामिल करवाया।

इंदिरा से लेकर राहुल तक; कोई भी गांधी नहीं

मोदी के ओबीसी होने पर प्रश्न पहली बार नहीं उठा है, परंतु जब ऐसा प्रश्न ‘राजनीतिक गांधी’ परिवार का कोई सदस्य उठाताहै; तो वह स्वयं में हास्यास्पद लगता है, क्योंकि पूरा देश जानता है कि देश पर 65 वर्षों तक शासन करने वाली कांग्रेस के ‘गांधी परिवार’ में इंदिरा से लेकर संजय,मेनका, राजीव, सोनिया, वरुण, प्रियंका और राहुल तक; कोई भी गांधी नहीं है। राहुल की दादी इंदिरा गांधी विवाह से पहले इंदिरा नेहरू थीं। राहुल के दादा फ़िरोज़ गांधी विवाह से पहले फ़िरोज़ घांडी थे। अब इंदिरा-फ़िरोज़ के विवाह से जन्मी संतान का उपनाम तो घांडी ही होना चाहिए था, परंतु महात्मा गांधी की कृपादृष्टि ने पहले फ़िरोज़ को घांडी से गांधी बनाया और इस तरह इंदिरा-फ़िरोज़ के वंशज भी घांडी से गांधी बन गए।

क्या राहुल स्वयं को मूल गांधी कह सकते हैं ?

जातिवाद की राजनीति करने पर आमादा राहुल गांधी ने मोदी पर जन्मजात ओबीसी नहीं होने का तो आरोप लगा दिया, परंतु क्या राहुल स्वयं को आधिकारिक रूप से गांधी सिद्ध कर सकते हैं। मोदी तो गुजरात सरकार के दस्तावेज़ों के ज़रिये यह सिद्ध भी कर सकते हैं कि वे जन्मजात न सही, परंतु आधिकारिक रूप से ओबीसी हैं। क्या राहुल स्वयं को जन्मजात गांधी सिद्ध कर सकते हैं ? मोदी एक जाति है, जिसका किसी विशेष वर्ग में शामिल होना उस समाज की प्रगति पर आधारित है, परंतु क्या राहुल रक्त या किसी भी संबंध से स्वयं को मूल गांधी कह सकते हैं ? शायद नहीं। ऐसे में राहुल को इस तरह के विवादों से बचना चाहिए।

राहुल कब समझ पाएंगे जनता की नब्ज़ ?

राहुल गांधी 2004 यानी पिछले 20 वर्षों से राजनीति कर रहे हैं, जब कांग्रेस ने 1996 के बाद संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग-यूपीए-UPA) के बैनर तले केन्द्र में सरकार बनाई थी। डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने थे और राहुल गांधी को भावी प्रधानमंत्री के रूप में देखा जा रहा था, परंतु इन 20 वर्षों में राहुल ने युवराज से महाराज बनने योग्य कोई राजनीतिक सफलता प्राप्त नहीं की। उल्टे; राहुल 2004 से 2014 तक केन्द्र में अपनी सरकार के ‘अहंकार’ में मद रहे। इस बीच 2014 में नरेन्द्र मोदी देश के सबसे लोकप्रिय नेता बन कर उभरे। मोदी की लोकप्रियता और राहुल के कारनामे; दोनों बढ़ते गए। मोदी जनता की नब्ज़ के जानकार निकले, जबकि राहुल ने मोदी को हराने के लिए किसी भी हद तक जाने का सिलसिला जारी रखा। यही कारण है कि आज भी राहुल जनता का मूड नहीं भाँप रहे हैं। एक ओर देश में मोदी लहर है, मोदी के साथ उनके कामकाज की लहर है, राम लहर है, हिन्दू लहर है, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की लहर है और दूसरी ओर राहुल जाति की डफली बजा रहे हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि अंतत: राहुल जनता की नब्ज़ कब समझेंगे ?

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