Wednesday, March 19, 2025
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दिल्ली विधानसभा चुनाव : 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को परिणाम

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·     मुख्य मुकाबला आम आदमी पार्टी और भाजपा के बीच

·     कांग्रेस के भी जोर लगाने से मुकाबला हुआ त्रिकोणीय

·     आआपा-केजरीवाल के लिए इस बार का चुनाव आसान नहीं

·     27 वर्षों से सत्ता से बाहर भाजपा दे रही कड़ी टक्कर

·     कांग्रेस हुई मजबूत, आआपा पर आपदा-भाजपा की बल्ले

दिल्ली, 07 जनवरी, 2025 : अंग्रेजी कैलेंडर का नया वर्ष प्रारंभ होते ही दिल्ली में चुनावी दुंदुभि बज गई है। दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 की तिथियों की मंगलवार को घोषणा के साथ ही सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आआपा-AAP) तथा मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा-BJP) चुनावी रण के लिए तैयार हो गई है।

चुनाव आयोग के अनुसार दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के लिए 5 फरवरी को मतदान होगा। विधानसभा की 70 सीटों के लिए एक ही चरण में मतदान कराया जाएगा, जबकि मतगणना 8 फरवरी को की जाएगी।

उल्लेखनीय है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बार मुख्य मुकाबला आम आदमी पार्टी तथा भाजपा के बीच है। हालाँकि पिछले दो चुनावों से हासिये पर धकिया रही कांग्रेस ने भी इस बार आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार और भाजपा की केन्द्र सरकार के मुकाबले खुद को सशक्त विकल्प के रूप में पेश करने के लिए जोर लगाया है। ऐसे में दिल्ली में कई विधानसभा क्षेत्रों में त्रिकोणीय मुकाबले के आसार नजर आ रहे हैं।

दिल्ली केन्द्रशासित प्रदेश है। इस कारण दिल्ली में कई ऐसे मुद्दे हैं, जो सीधे केन्द्र सरकार को स्पर्श करते हैं, तो कई ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर राज्य सरकार कटघरे में है। ऐसे में आआपा केन्द्र की भाजपा-एनडीए सरकार को घेर रही है, तो भाजपा दिल्ली की आआपा सरकार को। दूसरी ओर कांग्रेस दोनों ही सरकारों को घेरते हुए तथा पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत शीला दीक्षित के शासन को याद दिलाते हुए अपना सिक्का जमाने की फिराक में है।

हालाँकि इन सबके बीच दिल्ली में सबसे बड़ा मुद्दा ‘मुफ्त’ देने-पाने का है। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री तथा आआपा के संस्थापक अरविंद केजरीवाल द्वारा शुरू किए गए इस ‘मुफ्त’ कल्चर ने दिल्लीवासियों का दिल जीत रखा है। ऐसे में केजरीवाल के ‘मुफ्त’ कल्चर की काट के रूप में कांग्रेस और भाजपा भी ‘मुफ्त’ कल्चर को ही जीत का आधार बना रही हैं।

फिर भी इस बार का चुनाव केजरीवाल के लिए ‘मुफ्त’ कल्चर के जरिये ही जीत पाना मुश्किल लग रहा है, क्योंकि 10 वर्षों की एंटी-इनकम्बैंसी अगर ‘मुफ्त’ कल्चर पर भारी पड़ गई, तो केजरीवाल की वापसी खतरे में पड़ सकती है। पूर्ववर्ती केजरीवाल सरकार, स्वयं केजरीवाल के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोप, कुशासन सहित आआपा सरकार की कई कमियों को भाजपा और कांग्रेस ने मुद्दा बनाया है। जनता के मन में अगर केजरीवाल के तथाकथित कुप्रबंधन व कुशासन की बात बैठ गई, तो चुनावी ऊँट की करवट बदल भी सकती है।

जहाँ तक भाजपा का प्रश्न है, तो पिछले 27 वर्षों से दिल्ली की सत्ता से बेदखल भाजपा अपने राष्ट्रव्यापी चरम उभार तथा केन्द्र में दो बार पूर्ण बहुमत एवं दिल्ली की सभी सातों लोकसभा सीटें जीतने के बावजूद दिल्ली राज्य पर कब्जा करने में सफल नहीं हो पाई है। इसी कारण भाजपा ने इस बार दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने के लिए पूरा जोर लगा दिया है। हालाँकि भाजपा की सत्ता में वापसी का रास्ता अगर कोई बना सकता है, तो वह है कांग्रेस। दिल्ली में आआपा ने कांग्रेस के वोट पाकर ही सत्ता हासिल की थी। अगर कांग्रेस आआपा के वोट काटने में सफल रही, तो त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा को फायदा हो सकता है।

कांग्रेस का किस्सा बिलकुल विचित्र है। देश में केजरीवाल के साथ राजनीति करने वाली कांग्रेस दिल्ली में आआपा के खिलाफ ही चुनाव लड़ रही है। ऐसे में जनता के बीच कांग्रेस की विश्वसनीयता काफी हद तक गिरी हुई है। अगर कांग्रेस जोर लगाएगी, तो भी उसे बहुत अधिक सफलता मिलने की संभावना कम ही लगती है। यहाँ तक कि कांग्रेस के मुख्य विपक्षी दल बनने की संभावना भी नहीं के बराबर दिखाई पड़ती है। कांग्रेस अगर मजबूत हुई, तो उसका फायदा कांग्रेस को मिलेगा जरूर, लेकिन उस स्थिति में सत्ता उसे नहीं, बल्कि भाजपा को मिल सकती है।

देखना होगा कि ‘मुफ्त’ कल्चर की आदी बन चुकी दिल्ली की जनता अब किसका ‘मुफ्त’ कल्चर स्वीकार करती है। 

Bhavy Bhaarat News
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