
बनने चले थे ज़िम्मेदार विपक्ष, कर डाली ग़ैरज़िम्मेदाराना हरक़त
मोदी ने कोरोना संकट काल में विपक्षी राजनीति कर दी धूल-धूसरित
मोदी किसी भी ‘शासकीय पद रहित’ राजनेता से नहीं कर रहे परामर्श
राज्यों के मुख्यमंत्रियों से मोदी की सीधी बात हज़म नहीं हो रही विरोधियों को
18 NON-BJP मुख्यमंत्री, फिर भी मोदी बने THE BEST CO-ORDINATOR
मोदी ने सिद्ध किया, ‘भारत राजनीतिक दलों का नहीं, राज्यों का संघ है’
विशेष टिप्पणी : कन्हैया कोष्टी
अहमदाबाद (4 मई, 2020)। हमारे देश में दिन-रात चौबीसों घण्टे राजनेताओं की सक्रियता कभी-कभी उबा देती थी, परंतु पिछले 40 दिनों से राज्यों की राजधानियों से लेकर देश की राजधानी दिल्ली तक राजनीति, राजनीतिक सरगर्मी एवं राजनेताओं के क्रियाकलाप… सब कुछ परम् शांत अवस्था में हैं। चहुँओर केवल राष्ट्र के नेतृत्वकर्ता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा राज्यों के नेतृत्वकर्ता मुख्यमंत्रियों के ही नाम का बोलबाला है, तो शासन-प्रशासन व निजी क्षेत्र में रणभूमि में उतर कर लड़ रहे कोरोना (CORONA) विरोधी योद्धाओं पर प्रशंसा के फूल बरसाए जा रहे हैं।
न प्रिंट मीडिया, न वेब मीडिया और न ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया… किसी भी सार्वजनिक मीडिया में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा-BJP) एवं कांग्रेस (CONGRESS) से लेकर छोटे-बड़े एवं छुटभैया राजनीतिक दलों के नेताओं की कहीं कोई चर्चा नहीं है। राष्ट्र पर आन पड़ी कोविड 19 (COVID 19) महामारी के संकट में जहाँ केन्द्र सरकार की ओर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोरोना नियंत्रण की बाग़डोर सीधे अपने हाथों में ले रखी है, वहीं उसी बाग़डोर से देश के 30 राज्यों के मुख्यमंत्रियों, जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल तथा 5 राज्यों के प्रशासकों को भी कोरोना नियंत्रण की दिशा में ले जा रहे हैं।
आश्चर्य की बात यह है कि इस पूरे संकट काल से निपटने के लिए मोदी ने राजनीतिक नहीं, वरन् शासकीय-प्रशासकीय मार्ग अपनाया। मोदी ने दिल्ली में बैठे बड़े-बड़े दिग्गजों को दरकिनार कर दिया और कोरोना संक्रमण संकट के निवारण के मामले को सीधा-सीधा केन्द्र व राज्यों के बीच का मामला बना दिया। प्रधानमंत्री ने जनता कर्फ्यू (JANTA CURFEW) से लेकर लॉकडाउन (LOCKDOWN) तक सभी महत्वपूर्ण निर्णयों की प्रक्रिया में केवल और केवल राज्यों के शासकीय प्रमुखों को ही भागीदार बनाया। लॉकडाउन का पालन, लॉकडाउन के दौरान आवश्यक सतर्कता, सोशल डिस्टेंसिंग, निर्धनों को सहायता से लेकर श्रमिकों की घर वापसी तक की सारी प्रक्रियाओं को सीधे तौर पर केन्द्र व राज्य सरकारों के बीच का मसला बना दिया। इतना ही नहीं, मोदी ने इस रणनीति से सिद्ध कर दिया कि भारत राजनीतिक दलों का नहीं, वरन् राज्यों का संघ है।
मोदी की रणनीति ने अकलाया, तो टूट गया धैर्य का बांध

वास्तव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोरोना संकट से निपटने को केन्द्र व राज्य के बीच का ही मसला बना कर दिल्ली में बैठ कर राजनीति करने वाले बड़े-बड़े नेताओं को अकुला दिया। मोदी ने जब शासकीय पद रहित सभी राजनेताओं को उपेक्षित कर दिया, तो कांग्रेस के धैर्य का बांध टूट गया। लॉकडाउन 3.0 से पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (SONIA GANDHI) ने भाजपा पर कोरोना वायरस संकट काल में नफरत का वायरस फैलाने का आरोप लगाने का बचकाना बयान दिया। सोनिया का यह बयान कोरोना से निपटने में तो कहीं कोई काम नहीं आया। यद्यपि यह बयान उनकी राजनीतिक उपेक्षा से छटपटाहट को अवश्य व्यक्त कर गया।
उपेक्षा से परेशान ‘माँ-बेटे-बेटी’ का मोदी सरकार पर धावा
सोनिया या कांग्रेस को इस बयान से कोई राजनीतिक लाइमलाइट या माइलेज नहीं मिले, तो आज सोनिया को एक और अनुपम युक्ति सूझी। लॉकडाउन 3.0 के बाद फँसे हुए श्रमिकों की घर वापसी के रास्ते खुल गए। हज़ारों श्रमिकों के घर जाने की व्यवस्था केन्द्र सरकार ने रेलवे व राज्य सरकारों ने अपनी एसटी बसों के माध्यम से की। इसी बीच मोदी के ‘भाव’ नहीं दिए जाने से परेशान सोनिया ने श्रमिकों के ‘भाव’ लगा दिए।
एक तरफ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया ने घोषणा की कि श्रमिकों को घर जाने का यात्रा किराया कांग्रेस पार्टी देगी, तो दूसरी तरफ श्रमिकों को हो रही समस्याओं को मुद्दा बनाते हुए पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (RAHUL GANDHI) एवं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा (PRIYANKA GANDHI VADRA) ने ट्विटर पर मोदी सरकार पर आक्रमण किया।
भाजपा ने खोल दी पोल, फट गया कांग्रेस का ढोल
सोनिया ने जैसे ही घोषणा की कि श्रमिकों की घर वापसी का यात्रा किराया खर्च उनकी पार्टी वहन करेगी, तुरंत ही भाजपा की ओर से मुँहतोड़ जवाब भी दे दिया गया। यद्यपि सोनिया कांग्रेस को ज़िम्मेदार विपक्ष दिखाने की कोशिश कर रही थीं, परंतु उनकी यह कोशिश ही ग़ैरज़िम्मेदाराना सिद्ध हुई, क्योंकि केन्द्र सरकार पहले ही कह चुकी थी कि श्रमिकों की रेल यात्रा का 85 प्रतिशत खर्च केन्द्र व 15 प्रतिशत खर्च राज्य सरकारें उठाएँगी।
यह घोषणा करके सोनिया ने सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की अध्यक्ष होकर भी सोनिया इतनी बड़ी बात से अनभिज्ञ रह कर अपनी अज्ञानता व अपरिपक्वता का ही प्रदर्शन किया। ऐसे में भाजपा ने सोनिया को उत्तर देते हुए उल्टे उन्हें सलाह दे डाली कि वे कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से श्रमिकों को 15 प्रतिशत रेल यात्रा खर्च प्रदान करवाएँ।
मोदी की रणनीति : न सही जाए, न कही जाए…

मोदी की रणनीति ने सदैव राजनीतिक गलियारों एवं मीडिया में चमकने के आदी कई नेताओं की दाल-रोटी बंद कर दी है, जिनमें सबसे बड़े नाम हैं सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा। तीनों प्राय: राष्ट्रीय मुद्दों पर मोदी के घेरते रहते हैं, परंतु कोरोना एक ऐसा संकट आया, जिसने सोनिया-राहुल-प्रियंका ही नहीं, उन सभी नेताओं को अनिवार्य राजनीतिक अज्ञात वास में धकेल दिया, जो किसी भी शासकीय पद पर नहीं हैं। इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के 36 राज्यों के शासकों-प्रशासकों के साथ सीधी बात की और मोदी की यही रणनीति इन अज्ञात वास भोग रहे नेताओं को न हज़म हो रही है, न बर्दाश्त हो रही है, परंतु वे मोदी की इस रणनीति का विरोध भी नहीं कर सकते, क्योंकि मोदी न तो स्वयं केवल भाजपा नेता के रूप में कार्य कर रहे हैं और न ही वे राज्यों के मुख्यमंत्रियों को किसी दल विशेष का मान कर कार्य कर रहे हैं। कांग्रेस सहित सभी विरोधी जानते हैं कि देश के 36 में से 16 राज्यों में नॉन-बीजेपी सरकारें व मुख्यमंत्री हैं।
दलगत राजनीति से ऊपर उत्तम समन्वयक मोदी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी केन्द्र-राज्य नीति के माध्यम से न केवल स्वयं दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर काम रहे हैं, अपितु वे स्वयं को एक उत्तम समन्वयक भी सिद्ध करने में सफल रहे हैं। देश में कुल 36 राज्य हैं, जिनमें 30 राज्यों में मुख्यमंत्री हैं, जबकि जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन व 5 केन्द्र शासित प्रदेशों में प्रशासक हैं। जिन 30 राज्यों में मुख्यमंत्री हैं, उनमें 18 राज्य ऐसे हैं, जहाँ के मुख्यमंत्री का भाजपा से कोई संबंध नहीं है। ये 18 मुख्यमंत्री या तो नॉन-बीजेपी हैं या फिर भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA-राजग) से सम्बद्ध हैं। कुल मिला कर देश के 18 राज्यों में भाजपा के अतिरिक्त कांग्रेस सहित अन्य राजनीतिक दलों से सम्बद्ध मुख्यमंत्री होने के पश्चात् भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उनसे समन्वय साधने में सफल रह कर दलगत राजनीति से उत्तम समन्वयक भी सिद्ध हो रहे हैं। मोदी ने अब तक राज्यों के मुख्यमंत्रियों से चार बार वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कोरोना संकट पर मंत्रणा की है। उन्होंने पहली मंत्रणा 20 मार्च को, दूसरी मंत्रणा 2 अप्रैल को, तीसरी मंत्रणा 11 अप्रैल को एवं चौथी मंत्रणा 27 अप्रैल को की और उनके सुझावों के आधार पर ही लॉकडाउन सहित कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।