Wednesday, March 19, 2025
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वाइब्रेंट@20 : ‘56 की छाती वाला’ ही जला सकता था नफ़रत की आंधी में निवेश का दीप

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जब गोधरा कांड तथा दंगों के कारण गुजरात को विश्व स्तर पर किया जा रहा था बदनाम

राष्ट्रीय स्तर पर मोदी तथा गुजरात के विरुद्ध चलाया जा रहा था राजनीतिक अभियान

यह मोदी का ही माद्दा था कि विपरीत परिस्थितियों में भी वाइब्रेंट समिट जैसी ग्लोबल इवेंट का आयोजन किया

विशेष टिप्पणी : कन्हैया कोष्टी

अहमदाबाद, 27 सितंबर : वर्ष 2002 यानी गुजरात का वह कठिनाइयों भरा दौर, जब गांधीनगर से लेकर दिल्ली और दिल्ली से लेकर अमेरिका तक गुजरात तथा तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का नाम गूंज रहा था। राज्य से लेकर राष्ट्रीय राजनीति में और जगत जमादार अमेरिका से लेकर छुटभैये पाकिस्तान सहित विश्व के कई देशों में मोदी विरोधी नफ़रत की आंधी चल रही थी। गुजरात 1960 में हुई स्थापना के चार दशकों में सबसे कठिन दौर से गुज़र रहा था। देश-विदेश में जो कुछ चल रहा था, उससे दुनिया को यही लगता था कि गुजरात एक अशांत और दंगाई राज्य है।

दरअसल फ़रवरी-2002 में हुए गोधरा कांड और उसके बाद राज्य के बड़े शहरों से लेकर गाँवों तक फैली साम्प्रदायिक हिंसा के चलते शुरू हुई गंदी राजनीति के बीच मोदी अपना मुख्यमंत्री पद बनाए रखने की बड़ी चुनौती का सामना कर रहे थे। ऐसी विपरीत परिस्थिति में भी यदि गुजरात में वर्ष 2003 में विश्व स्तरीय इवेंट यानी वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल इन्वेस्टर समिट का आयोजन किया गया, तो मानना होगा कि यह काम कोई 56 इंच की छाती वाला व्यक्त ही कर सकता है।

गोधरा कांड व दंगों के बाद गुजरात विरोधी अभियान

नरेन्द्र मोदी ने 7 अक्टूबर, 2001 को गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ ली थी; परंतु साढ़े चार महीने बाद ही गुजरात पर उस समय एक थोपी गई मानवीय आपदा आन पड़ी, जब 27 फ़रवरी, 2002 को गोधरा कांड को अंजाम दिया गया। इसकी प्रतिक्रिया के रूप में 28 फ़रवरी, 2002 से अहमदाबाद, वडोदरा सहित राज्य के बड़े शहरों और छोटे-छोटे गाँवों तक साम्प्रदायिक हिंसा भड़क उठी। हमारे देश में; विशेषकर गुजरात में वर्ष 2002 तक साम्प्रदायिक हिंसा होना कोई नई बात नहीं थी, परंतु आरोप ये लगे कि गोधरा कांड के बाद हुई साम्प्रदायिक हिंसा राज्य सरकार की शह पर हुई। इसके बाद शुरू हुआ मोदी विरोध का राजनीतिक ढोंग। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर राजनीति करने वालों ने जहाँ एक ओर गोधरा कांड में मारे गए लोगों के प्रति संवेदना का एक शब्द प्रकट नहीं किया, वहीं गोधरा कांड के बाद भड़की हिंसा को लकर गुजरात से लेकर पूरे देश में मोदी विरोध का झंडा बुलंद कर डाला। पूरे देश में और यहाँ तक कि विदेशों में भी गुजरात तथा मोदी के विरुद्ध अभियान चलाए गए।

मानना पड़ेगा मोदी का माद्दा

विचार कीजिए कि जब गुजरात को चारों ओर बदनाम किया जा रहा था और मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी पर गालियों की बरसात की जा रही थी, तब ऐसी विपरीत परिस्थितियों में विश्व स्तरीय वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल इन्वेस्टर समिट (VGGIS) के आयोजन का विचार भी कर पाना संभव था ? लेकिन यह मोदी का ही माद्दा था कि उन्होंने गुजरात की चित्रित की जा रही छवि से उलट स्वाभाविक छवि को गुजरात और देश-दुनिया तक पहुँचाने का बीड़ा उठाया। यह मोदी का ही साहस था कि नफ़रत की इस महाविराट आंधी के बीच उन्होंने निवेश का दीप जलाने की दिशा में क़दम उठाया।

निवेश का बीज बना वटवृक्ष

मोदी विरोधी अभियान 2002 से शुरू हुआ, जो आज 21 वर्षों के बाद भी जारी है; परंतु मोदी ने गुजरात को गोधरा कांड तथा साम्प्रदायिक हिंसा की काली छाया से बाहर निकालने के लिए 28 सितंबर, 2003 को पहली बार वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल इन्वेस्टर समिट का आयोजन किया और आज वह बीज वटवृक्ष बन चुका है। मोदी ने 2003 में पहली बार आयोजित समिट में बड़ी सफलता प्राप्त कर विरोधियों पर आधी जीत हासिल कर ली और गुजरातियों तथा भारत तथा विश्वभर के निवेशकों में गुजरात के प्रति विश्वास का बीज बोया, जो आज वटवृक्ष बन चुका है और 20 वर्ष पूर्ण करने जा रहा है।

दबाव के बीच दबंग बन कर उभरे मोदी

चहुँओर गुजरात तथा मोदी विरोधियों के शोर के बीच राज्य में देश-विदेश के निवेशकों को आकर्षित करना आसान कार्य नहीं था। चारों ओर से राजनीतिक दबाव झेल रहे मोदी ने जब 2003 में वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल समिट के आयोजन की घोषणा की, तब द्वेषपूर्ण वातावरण के कारण गुजरात में निवेशकों के आने को लेकर बड़ी-बड़ी आशंकाएँ जताई जा रही थीं, परंतु दबाव के बीच मोदी दबंग बन कर उभरे। गुजरात को अशांति तथा बदनामी की आंधी से निकाल कर औद्योगिक क्षेत्र में अग्रसर बनाने, बड़े निवेशकों को आकर्षित करने और राज्य के लोगों को रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराने वाले सर्वसमावेशी विकास के उद्देश्य के साथ मोदी ने 28 सितंबर, 2003 को प्रथम वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल समिट का प्रारंभ किया। गुजरात विरोधी तथा अविश्वास के वातावरण के बावजूद पहली ही समिट में केवल 125 विदेशी प्रतिनिधियों तथा 200 प्रवासी भारतीय भागीदारों ने भाग लिया। इतना ही नहीं, पहली ही समिट में 14 बिलियन डॉलर यानी 70,000 करोड़ रुपए के 76 एमओयू हुए।

वीजीजीआईएस से विरोधियों को क़रारा तमाचा

मोदी ने वीजीजीआईएस की पहले ही संस्करण में ज़बर्दश्त सफलता हासिल कर देश-विदेश में मोदी विरोधी एजेंडा चला रहे तथाकथित धर्मनिरपेक्ष टोली को क़रारा तमाचा जड़ा। इसके बाद मोदी ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। एक ओर मोदी के विरुद्ध ष्ट्रीय राजनीति में भारी विरोध तथा दंगों के मुद्दे पर क़ानूनी शिकंजा कसा जा रहा था, तो दूसरी ओर मोदी ने 2003 के बाद 2005, 2007, 2009, 2011 और 2013 में लगातार एक से बढ़ कर एक वीजीजीआईएस का सफल आयोजन कर अपने विरुद्ध चलाए जा रहे अभियान पर ठंडा पानी फेर दिया और गुजरात को बेस्ट डेस्टिनेशन फ़ॉर इन्वेस्टमेंट बना दिया। मोदी के प्रधानमंत्री बनने बाद भी राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्रियों ने मोदी के मार्गदर्शन में 2015, 2017, 2019 में वीजीजीआईएस का सफल आयोजन किया और अब वर्तमान मुख्यमंत्री श्री भूपेन्द्र पटेल के नेतृत्व में पहली बार तथा वीजीजीआईएस का 10वाँ संस्करण आगामी जनवरी-2024 में आयोजित होने जा रहा है।

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