Wednesday, March 19, 2025
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क्या ‘ठाकरे’ झकझोर रहे उद्धव की अंतरात्मा को ? सनातन के स्वर्णिम काल में कट्टर हिन्दुत्ववादी ‘ठाकरे’ की शिवसेना विरोधियों के साथ क्यों ?

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क्या ‘ठाकरे’ की शिवसेना को हिन्दुत्व विरोधियों के खेमे में हो रही घुटन ?

क्या उद्धव के लिए ‘यही समय है, सही समय है’ एनडीए में लौटने का ?

सच होती दिखाई दे रही ‘भव्यभारत.कॉम’ की भविष्यवाणी

आलेख : कन्हैया कोष्टी

अहमदाबाद, 06 फरवरी, 2024 : महाराष्ट्र की राजनीति में पिछले दो दिनों से एक नई चर्चा ने जोर पकड़ा है। वैसे भव्यभारत.कॉम ने गत 30 जनवरी, 2024 को ही यह भविष्यवाणी कर दी थी, “जो बिहार में हुआ; अगर वह हो सकता है, तो महाराष्ट्र में भी हो सकता है और उद्धव ठाकरे फिर एक बार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग-NDA) में वापसी कर सकते हैं।” जब हमने यह भविष्यवाणी की, तब महाराष्ट्र की राजनीति में दूर-दूर तक ऐसी कोई संभावना नहीं दिख रही थी कि उद्धव का मन डोल सकता है; परंतु हमारी भविष्यवाणी के कुछ ही घण्टों बाद उद्धव ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा कर डाली। इतना ही नहीं; उद्धव उस वंदे भारत ट्रेन में भी सपत्नीक यात्रा करते नजर आए, जिसकी विपक्ष के किसी भी नेता ने शायद ही प्रशंसा की हो या यात्रा की हो।

उद्धव के इस बदले सुर से राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज़ हो गई है कि उद्धव कदाचित् एनडीए में उल्टे पाँव लौट सकते हैं, परंतु प्रश्न यह है कि आख़िर उद्धव का मन क्यों डोल रहा है ? क्या ‘ठाकरे’ झकझोर रहे हैं अपने पुत्र उद्धव के अंतरात्मा को ? क्या ‘ठाकरे’ अपने पुत्र उद्धव से प्रश्न कर रहे हैं, “जिस हिन्दुत्व के लिए मेरी शिवसेना ने इतने संघर्ष किए, जिस राम मंदिर आंदोलन के दौरान बाबरी मस्जिद को ढहाने की जिम्मेदारी सबसे पहले मैंने ली; उस हिन्दुत्व का आज जब स्वर्णिम काल आया है, तब मेरी शिवसेना और मेरा पुत्र उद्धव ‘हिन्दुत्व विरोधियों’ के साथ क्यों है और क्या कर रहा है ?”

जब हिन्दुत्व का उदय, दूर क्यों हैं उद्धव ?

यहाँ ‘ठाकरे’ से तात्पर्य अखंड शिवसेना के स्थापना दिवंगत बालासाहब ठाकरे हैं, जो अपने आजीवन हिन्दुत्व के सबसे बड़े समर्थक रहे। ठाकरे ने कट्टर हिन्दुत्व के साथ 1966 में शिवसेना का गठन किया था। ठाकरे की शिवसेना का गठन ही मुस्लिमों का तुष्टिकरण करने वाली कांग्रेस (Congress) के विरुद्ध हुआ था। समय के साथ मुस्लिम तुष्टिकरण करने वाले राजनीतिक दलों में कांग्रेस के बाद कई राजनीतिक दल जुड़ते गए। 90 के दशक में जब देश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा-BJP) ने राम मंदिर आंदोलन शुरू किया, तब शिवसेना को राष्ट्रीय स्तर पर एक हिन्दुत्व समर्थक राजनीतिक दल मिला और 1988 में महाराष्ट्र में ठाकरे ने शिवसेना का भाजपा के साथ गठबंधन कराया। ठाकरे आजीवन हिन्दुत्व के समर्थन में मुस्लिम तुष्टीकरण तथा उसकी समर्थक कांग्रेस सहित सभी राजनीतिक दलों के विरुद्ध संघर्ष करते रहे, परंतु आज उन्हीं ठाकरे के पुत्र उद्धव उन्हीं दलों के खेमे में हैं; जिनके विरद्ध ठाकरे ने आजीवन संघर्ष किया।

आज जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में पूरे देश में सनातन धर्म और हिन्दुत्व का परचम लहरा रहा है, देश का सांस्कृतिक जीर्णोद्धार हो रहा है, समग्र देश में सनातन धर्म की जय-जयकार हो रही है; तब हिन्दुत्व के सबसे बड़े ठेकेदार रहे दिवंगत बालासाहब ठाकरे का आत्मा आज निश्चित ही प्रफुल्लित और प्रसन्न हो रहा होगा, परंतु क्या ठाकरे अपने पुत्र उद्धव ठाकरे की वर्तमान राजनीतिक स्थिति से खुश होंगे ?

अखंड शिवसेना के संस्थापक ठाकरे अपनी शिवसेना के टूटने और पुत्र उद्धव ठाकरे के कट्टर विरोधियों के खेमे में होने से निश्चित रूप से दु:खी ही होंगे; क्योंकि वह ठाकरे ही थे, जिन्होंने जीते-जी कई बार कहा था, “शिवसेना कभी भी कांग्रेस के साथ नहीं हो सकती।” इस बात में भी कोई संदेह नहीं है कि उद्धव को पिता ठाकरे के बयान अच्छी तरह याद होंगे।

उद्धव के बदले सुर के पीछे ठाकरे ?

ऐसे में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि उद्धव अपने पिता की खींची राजनीतिक रेखा पर लौटने की सोच रहे हों और ऐसा करने में उन्हें कोई संकोच भी नहीं होगा। राजनीतिक दृष्टिकोण से भी देखें, तो भी उद्धव को उनके पिता ठाकरे की शिवसेना के उत्तराधिकारी के रूप में कांग्रेस तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा-NCP) के साथ एक न एक दिन घुटन होनी ही है और उद्धव के लिए इस घुटन से बाहर आने का ‘यही समय है, सही समय है’। लोकसभा चुनाव 2024 से पहले और वह भी इस माह के अंत तक उद्धव को इस निर्णय पर पहुँचना होगा।

आज देश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में जहाँ एक ओर कश्मीर से धारा 370 समाप्त हो गई, वहीं भाजपा तथा ठाकरे की शिवसेना के सबसे बड़े एजेंडा में शामिल अयोध्या में भगवान श्री राम के मंदिर का निर्माण हो चुका है। इतना ही नहीं; भाजपा व ठाकरे की शिवसेना के एजेंडा में काशी-मथुरा में मंदिर निर्माण का मुद्दा भी शामिल है और इसके लिए न्यायालयों में लड़ाई शुरू भी हो चुकी है। केन्द्र की मोदी सरकार और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार हिन्दुओं से जुड़े हर आस्था स्थल के विवाद में न्यायालयों में कांग्रेस की भाँति हिन्दू विरोधी रवैया नहीं अपना रही हैं। भविष्य में भी कई ऐसे मुद्दे आएंगे, जहाँ भाजपा के साथ न रहने का उद्धव की शिवसेना को जरूर खेद रहेगा।

उद्धव की वापसी मुश्किल, पर नाममुकिन नहीं

हालाँकि उद्धव की एनडीए में वापसी की चर्चा करना जितना आसान है, वापसी उतनी आसान नहीं है; परंतु ‘मोदी है, तो मुमकिन है’ की तर्ज पर सोचा जाए, तो उद्धव की वापसी नाममुकिन नहीं है। यदि बिहार में प्रदेश भाजपा तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भर-भरके कोसने वाले नीतीश कुमार अपनी राजनीतिक विवशता के कारण एनडीए में वापसी कर सकते हैं, तो उद्धव के पास तो एनडीए में वापसी के एक नहीं, हज़ार वाजिब कारण हैं और सबसे बड़ा कारण हिन्दुत्व है। एकमात्र हिन्दुत्व के नाम पर भी उद्धव एनडीए में वापसी कर सकते हैं। जहाँ तक मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना का प्रश्न है, तो ठाकरे के नाम पर दोनों गुटों को फिर से मिलाना मुश्किल नहीं होगा। दूसरी ओर अजित पावर की बात करें, तो उद्धव यदि कट्टर हिन्दुत्व की छवि भुला कर शरद पवार की एनसीपी के साथ जा सकते हैं; तो अजित पवार से गुरेज़ क्यों करेंगे ? अब यह तो आने वाले कुछ दिनों में ही पता चलेगा कि उद्धव किस करवट बैठते हैं ? वैसे भी उद्धव कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडि गठबंधन में सीटों के बँटवारे को लेकर संघर्ष कर ही रहे हैं। तो स लिहाज़ से भी उद्धव किसी भी समय पाला बदल सकते हैं और हिन्दुत्व के नाम पर ऐसा करने में उन्हें शायद ही संकोच होगा।

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