पटना: जैसे-जैसे बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तारीख़ क़रीब आती जा रही है, राज्य की राजनीति एक निर्णायक मोड़ पर पहुंचती दिख रही है। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही इस बार युवा मतदाताओं को रिझाने के लिए आक्रामक रणनीतियाँ अपना रहे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो पिछले दो दशकों से बिहार की राजनीति का सबसे स्थिर चेहरा रहे हैं, इस बार पूरी ताक़त से मैदान में उतर चुके हैं। वहीं, बीजेपी अपनी पारंपरिक पहचान से आगे बढ़कर ग्रामीण और पिछड़े तबकों तक अपनी पहुंच बढ़ा रही है।
नीतीश कुमार का चुनावी ब्लूप्रिंट: “रोजगार, राहत और भरोसा
नीतीश कुमार ने चुनाव से ठीक पहले युवाओं को लुभाने के लिए एक बड़ा दांव चला है – स्थानीय निवासी नीति (डोमिसाइल पॉलिसी) का ऐलान। अब से बिहार में शिक्षकों की नियुक्ति में बिहार के मूल निवासियों को वरीयता दी जाएगी। यह नीति इस साल होने वाली BPSC की TRE-4 परीक्षा में लागू होगी, जिसमें PRT, TGT और PGT शिक्षकों की भर्ती होगी। साथ ही, TRE-5 और STET परीक्षाओं के माध्यम से कुल मिलाकर 1 लाख से अधिक पदों को भरा जाएगा।
लेकिन केवल नियुक्तियाँ ही नहीं, नीतीश ने एक और बड़ी योजना की घोषणा की है — 2030 तक एक करोड़ रोजगार देने का संकल्प। इसके लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया है, जो सरकारी, निजी, इंडस्ट्री और स्टार्टअप सेक्टर में रोजगार की संभावनाएँ तलाशेगी। यह स्पष्ट संकेत है कि नीतीश “रोजगार से विकास” की नई राजनीतिक स्क्रिप्ट लिखना चाहते हैं। उनके हालिया ऐलानों का फोकस मुख्य रूप से युवा, महिलाएं और मध्यम वर्ग है। प्रमुख घोषणाओं में शामिल हैं:

- 125 यूनिट तक मुफ्त बिजली (1 अगस्त 2025 से लागू)
- पत्रकारों की पेंशन तीन गुना (₹6000 से ₹15000 मासिक)
- दिवंगत पत्रकारों के आश्रितों को ₹10,000 मासिक
- मिड डे मील रसोइयों का वेतन ₹1650 से ₹3300
- फिजिकल ट्रेनिंग इंस्ट्रक्टर का वेतन ₹8000 से ₹16000
- रात्रिकालीन गार्ड की सैलरी ₹5000 से ₹10000
बेरोजगारी के आंकड़े: युवाओं के गुस्से की जड़?
- बिहार में बेरोजगारी एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है। हालिया आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक़:
- शहरी पुरुषों की बेरोजगारी दर: 6.9%
- ग्रामीण पुरुषों की बेरोजगारी दर: 3.3%
- कुल पुरुष बेरोजगारी दर: 3.6%
- कुल महिला बेरोजगारी दर: 1.4%
- देश की औसत बेरोजगारी: 3.2%
यानी बिहार अब भी राष्ट्रीय औसत से ऊपर है, खासकर शहरी युवाओं में निराशा ज़्यादा दिखती है। ऐसे में यह सवाल उठता है — क्या नीतीश की नई घोषणाएं वाकई युवा वोटर का भरोसा जीत पाएंगी?
बीजेपी की बदली हुई सियासी चाल
भाजपा ने अब तक बिहार में शहरी, मध्यम वर्गीय और ऊपरी जाति के वोटबैंक पर भरोसा किया था। लेकिन 2025 के लिए रणनीति बदल गई है। पार्टी अब निचले तबकों, ओबीसी, दलितों और युवाओं को ध्यान में रखकर नीतियां बना रही है। संकेत साफ हैं — अब मुकाबला विकास और रोजगार का है, केवल जातीय संतुलन का नहीं।
बीजेपी की संभावित घोषणाएँ:
- युवा उद्यमियों के लिए स्टार्टअप सब्सिडी स्कीम
- ग्रामीण युवाओं के लिए डिजिटल स्किलिंग हब
- दलित/महादलित वर्गों के लिए स्पेशल स्कॉलरशिप प्रोग्राम
महागठबंधन की रणनीति: साइलेंट लेकिन मजबूत?
आरजेडी और कांग्रेस का नेतृत्व कर रहा महागठबंधन इस समय अपेक्षाकृत शांत है, लेकिन चुनावी तारीख जैसे-जैसे करीब आएगी, तेजस्वी यादव के नेतृत्व में वह भी आरक्षण, बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दों को लेकर बीजेपी और जेडीयू को घेरने की कोशिश करेगा।
अंत में सवाल: क्या युवा नीतीश पर फिर से भरोसा करेंगे?
नीतीश कुमार ने बार-बार यह साबित किया है कि वे व्यवस्था के स्थायी कारीगर हैं। लेकिन आज का युवा, जो सोशल मीडिया से लेकर स्टार्टअप तक सब कुछ में तेज़ सोच रखता है, उसके लिए केवल घोषणाएँ काफी नहीं। वह परिणाम चाहता है।
2025 का चुनाव इस बार जातियों की गणित से अधिक, युवा उम्मीदों की परीक्षा बनता जा रहा है। और यही इस चुनाव को सबसे दिलचस्प बना देता है।
नज़र रखने योग्य बिंदु:
- क्या TRE-4 की परीक्षा से पहले नौकरियाँ मिलेंगी?
- रोजगार के वादों पर ज़मीन पर क्या काम दिखेगा?
- बीजेपी की सामाजिक पहुंच में कितना बदलाव आएगा?
- युवा मतदाता किसे अपना नेता मानेगा — अनुभवी नीतीश, वादाकार तेजस्वी या नया प्रयोग कर रही बीजेपी?