मुम्बई – Maharashtra Politics 2025। भारतीय राजनीति में विशेष रूप से महाराष्ट्र की राज-नीति हमेशा से अप्रत्याशित स्थिति के लिए पहचानी जाती रही है। यहाँ कब, कौन किसका दुश्मन बने और कब दोस्त बन गले लग जाए-कुछ भी तय नहीं होता। हाल ही में यही बात ‘भरत मिलाप’ के रुप में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने साबित कर दी है। उद्धव ठाकरे के 65 वें जन्मदिन पर बधाई
के बहाने हुआ यह मिलन ऐसी
कुटिल चालें हैं, जिसका राजनीतिक असर भविष्य में दिखना तय है।
‘सत्ता’ की खातिर राज करने के लिए 2 नेता एक ही वंश से, लेकिन अलग-अलग विचारधाराओं पर चले, पर जब सत्ता नहीं है तो साथ आ गए हैं। महाराष्ट्र में राजनीति की कुटिलता और चौंकाने वाली चालों का यह जीवंत उदाहरण है। पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे अलग विचारधाराओं और राजनीतिक राहों के राही होकर भी अब जब एक ही मंच पर मुस्कराते नजर आए, तो न केवल राजनीतिक गलियारों में खलबली मची है, बल्कि जनता भी चौंक गई है, किन्तु राजनीति के पुराने ज्ञानी और विश्लेषक इनका निशाना समझ गए हैं।
उद्धव ठाकरे को कहा था ‘अयोग्य नेतृत्व’-
आज जो राज ठाकरे उद्धव ठाकरे को अपनाने चले हैं, उन्हीं राज ठाकरे ने बरसों पहले शिवसेना से अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) बनाई थी, तो यह केवल राजनीतिक विभाजन नहीं था, बल्कि भावनात्मक दरार भी थी। तब दोनों भाइयों के बीच मतभेद, बयानबाज़ी और तल्ख़ रिश्तों की राजनीतिक कहानी किसी से छुपी नहीं है। सत्ता के मोह में ऐसा समय भी आया, जब राज ठाकरे ने उद्धव ठाकरे को ‘अयोग्य नेतृत्व’ कहने से भी परहेज़ नहीं किया था। ऐसे ही शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे भी राज पर ‘आंबेडकरवाद’ और ‘मराठा अस्मिता’ के नाम पर राजनीति करने का आरोप लगाते रहे, किन्तु अब दोनों सब बातों को छोड़कर एकजुटता दिखा रहे हैं, ताकि भाजपा एवं एकनाथ शिंदे वाली शिवसेना को परास्त कर सकें।
भाजपा को कड़ी चुनौती सम्भव-
अब बदलता राजनीतिक परिदृश्य भाजपा के लिए संकट बन सकता है। दरअसल, महाराष्ट्र में भाजपा के बढ़ते प्रभाव और क्षेत्रीय दलों के अस्तित्व की रक्षा एवं चिंता ने पुराने घावों पर मरहम लगाने का काम किया है। इसी वजह से दोनों भाई जन्मदिन के मौके पर फिर राम-भरत की तरह मिलकर इस मिलन से सबको साधना चाहते हैं। 6 साल बाद ‘मातोश्री’ में भरत रूपी राज ठाकरे के जाने का यह मिलाप सिर्फ भावनात्मक नहीं, रणनीतिक भी प्रतीत हो रहा है। महाराष्ट्र की सत्ता में अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए क्षेत्रीय ताकतों का यह नया समीकरण भाजपा को कड़ी चुनौती दे सकता है, क्योंकि एक समय सत्ता में भाजपा और शिवसेना साथ रहे हैं।
मराठी मतदाता पर ही ध्यान-
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उद्धव-राज ठाकरे की जोड़ी यदि वाकई एकजुट हो जाती है, तो यह मराठी मतदाता वर्ग को फिर से लामबंद कर सकती है, जो पिछले कुछ वर्षों में विभाजित हो गया था। इससे न केवल शरद पवार के नेतृत्व वाली विपक्षी राजनीति को ऊर्जा मिलेगी, बल्कि महाराष्ट्र का यह गठबंधन राजनीति को भी नई दिशा देगा।
दरवाज़ा हमेशा बंद नहीं होता-
क्रिकेट की तरह राजनीति का खेल भी आश्चर्यजनक होता है, जो भरत मिलाप स्वयं बोल रहा है। हालांकि, यह समझौता स्थायी है, या केवल आगामी चुनाव तक सीमित है-यह अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन इतना पक्का है कि राजनीति में कोई भी दरवाज़ा हमेशा बंद नहीं होता। परिस्थिति चाहे तो दुश्मनी को भी गठजोड़ में बदल सकती है। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे का मिलन भी उसी परिवर्तन का इशारा है, क्योंकि सत्ता का मोह तो इन सबसे बड़ा होता है न साहेब…।
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