‘वन कवच’ पहल के जरिए पर्यावरण संरक्षण में अग्रणी बना गुजरात, जापानी पद्धति से 400 हेक्टेयर में तैयार होगा घना जंगल
जापानी मियावाकी पद्धति में 10 गुना तेजी से होती है पौधों की वृद्धि, पारंपरिक जंगलों की तुलना में होते हैं 30 गुना अधिक घने
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की पहल ‘वन कवच’ के तहत शहरी वनीकरण के मामले में गुजरात अन्य राज्यों के लिए बना मिसाल
गांधीनगर, 4 जून : प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भारत में पर्यावरण संरक्षण और नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए स्थानीय स्तर पर जापानी मियावाकी पद्धति को प्रोत्साहन दिया है। मियावाकी पद्धति जापान के वनस्पतिशास्त्री डॉ. अकीरा मियावाकी द्वारा विकसित की गई है, जिसका उद्देश्य सीमित भूमि पर तेजी से घने वनों का निर्माण करना है। मुख्यमंत्री श्री भूपेंद्र पटेल के मार्गदर्शन में राज्य सरकार ने राज्य में तेजी से वृक्ष लगाने के लिए ‘वन कवच’ बनाने का बीड़ा उठाया है। यह वन कवच शहरी, उप-नगरीय और ग्रामीण क्षेत्रों में हरित आवरण बनाकर हवा से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर लेता है। इससे विभिन्न वनस्पतियों और जीव सृष्टि का संरक्षण होता है और किसानों के लिए रोजगार में भी वृद्धि होती है।
उल्लेखनीय है कि पर्यावरण संरक्षण के बारे में लोगों में जागरूकता लाने के उद्देश्य से हर वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। गुजरात में मियावाकी पद्धति से वन कवच तैयार करने की पहल पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
वन कवच पहल के तहत राज्य का 400 हेक्टेयर क्षेत्र घने जंगलों में परिवर्तित होगा
मुख्यमंत्री श्री भूपेंद्र पटेल के कुशल नेतृत्व में गुजरात में वन कवच पहल को सफलतापूर्वक क्रियान्वित किया गया है, जिसके चलते पर्यावरण में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। गुजरात में वर्ष 2023-24 में 85 स्थानों पर 100 हेक्टेयर क्षेत्र में वन कवच तैयार किया गया था जबकि 2024-25 में 122 स्थानों के साथ अतिरिक्त 200 हेक्टेयर क्षेत्र में वन कवच विकसित किया जा रहा है। वहीं, 2025-26 के लिए यह लक्ष्य 400 हेक्टेयर रखा गया है। गुजरात ने वन कवच पहल के अंतर्गत वनीकरण के लिए यह अभिनव दृष्टिकोण अपनाकर ‘ग्रीन फ्यूचर और टिकाऊ विकास’ के लिए राज्य की अटूट प्रतिबद्धता दिखाई है।

पारंपरिक जंगलों की तुलना में अधिक कार्बन अवशोषित करते हैं मियावाकी जंगल
मियावाकी पद्धति से कम समय में एक बड़े क्षेत्र में विशाल जंगल विकसित किया जा सकता है। ये जंगल प्रति हेक्टेयर 10,000 स्वदेशी पौधे रोपकर तैयार किए जाते हैं, जिसमें 1 मीटर X 1 मीटर की निर्धारित दूरी की पद्धति का उपयोग किया जाता है। इस पद्धति से विकसित किए गए घने जंगल पारंपरिक जंगलों की तुलना में 10 गुना तेजी से बढ़ते हैं, साथ ही वे 30 गुना अधिक घने भी होते हैं।
एक-दूसरे के करीब लगाए जाने के कारण इन पौधों को सूर्य प्रकाश प्राप्त करने के लिए प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है, इसलिए इस पद्धति में पौधे तेजी से बढ़ते हैं और इससे एक बड़ी छतरी जैसी संरचना बनती है। इस आवरण के कारण खरपतवार को नियंत्रित किया जा सकता है और भूमि में नमी बनी रहने के कारण पौधों का स्वास्थ्य भी बेहतर रहता है। इस पद्धति से उगे हुए वृक्ष पारंपरिक जंगलों की तुलना में अधिक कार्बन अवशोषित करते हैं और वातावरण में मौजूद प्रदूषण को कम करते हैं। इतना ही नहीं, पारंपरिक जंगलों को परिपक्व होने में सदियां लग जाती हैं, जबकि वन कवच केवल 20 से 30 वर्ष में घने हो जाते हैं।
पर्यावरणीय लाभों के अलावा वन कवच सामाजिक एकजुटता और इको-टूरिज्म को भी बढ़ावा देता है। इस वन कवच में वन कुटीर, बच्चों के लिए खेल के मैदान और खूबसूरत स्थलों का समावेश होता है, जो वृक्षों और जैव विविधता के महत्व के बारे में जनजागरूकता बढ़ाने में मदद करते हैं। इस पद्धति से विकसित किए गए जंगलों से पक्षियों और जीव-जंतुओं का संरक्षण होता है और छोटे स्तनधारी जीवों को भी फायदा होता है। इसके अतिरिक्त, कुछ किसान मियावाकी पद्धति का उपयोग कर बेहतर लाभ भी अर्जित कर रहे हैं।
वन कवच पहल के द्वारा शहरी वनीकरण के मामले में गुजरात बना मिसाल
पर्यावरण को और अधिक सुंदर बनाने के लिए गुजरात की वन कवच पहल अन्य राज्यों के लिए एक मिसाल बन गई है। मियावाकी पद्धति से बंजर या अनुपजाऊ भूमि पर पेड़ उगाए जा सकते हैं, इसलिए राज्य में वन कवच पहल तेजी से बढ़ रही है। स्थानीय प्राधिकरण मियावाकी जंगलों के विकास के लिए भूमि और संसाधनों का आवंटन कर रहे हैं। अहमदाबाद से लेकर सूरत तक विकसित हो रहे वन कवच हवा की गुणवत्ता में सुधार कर रहे हैं और पर्यावरण जागरूकता फैलाने का काम भी कर रहे हैं। वन कवच के जरिए, शहरी वनीकरण के मामले में गुजरात एक अग्रणी राज्य बन गया है और उसने यह सिद्ध कर दिखाया है कि प्रतिबद्धता एवं अभिनव दृष्टिकोण के साथ हमारे शहर भी हरे-भरे बन सकते हैं।