Wednesday, March 19, 2025
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क्या था मोदी का ‘अमदावादी’ आइडिया, जिससे ठहर गया पूरा इंडिया ?

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रिपोर्ट : कन्हैया कोष्टी

अहमदाबाद। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मूलत: गुजरात के हैं। मोदी जन्म से वडनगरी-मेहसाणी हैं, तो एक समय कर्म से अमदावादी (अहमदाबादी) थे। ऐसे में मोदी के हर कर्म में गुजरात, विशेष रूप से अहमदाबाद का प्रभाव रहना स्वाभाविक है।

विश्व का तो नहीं मालूम, परंतु भारत के बारे में दावे से कहा जा सकता है कि 19 मार्च, 2020 से पहले गुजरातियों को छोड़ कर किसी भारतीय ने शायद ही एक ‘अमदावादी’ आइडिया के बारे में नाम सुना होगा। क्या किसी को याद है कि क्या था वह ‘अमदावादी’ आइडिया, जिसे मोदी ने ठीक एक वर्ष पूर्व देश में आज़माया था और पूरा इंडिया ठहर गया था ?

चलिए, हम आपको याद दिलाए देते हैं। वह ‘अमदावादी’ आइडिया था ‘जनता कर्फ़्यू’। इसे ‘अमदावादी’ आइडिया इसीलिए कह रहा हूँ, क्योंकि गुजरात सरकार, गुजरात एवं अहमदाबाद पुलिस तथा अहमदाबाद का अल्पंख्यक समुदाय शांति एवं सद्भावना के लिए इस ‘जनता कर्फ़्यू’ नामक आइडिया का साल में कम से कम एक बार ‘जगन्नाथ रथयात्रा’ के दिन ज़रूर इस्तेमाल करते थे। यह ‘अमदावादी’ आइडिया बहुत सफल रहता था और अषाढ़ी दूज को अहमदाबाद में मुस्लिम बहुल क्षेत्रों से गुज़रने वाली भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा शांतिपूर्वक सम्पन्न होती थी।

मोदी ने कोरोना के विरुद्ध आज़माया ‘अमदावादी’ आइडिया

एक वर्ष पूर्व कोरोना (CORONA) वायरस से फैली वैश्विक महामारी कोविड 19 (COVID 19) ने जब भारत में पाँव पसारने शुरू किए, तो प्रधानमंत्री मोदी ने इस अदृश्य शत्रु के विरुद्ध 19 मार्च, 2020 गुरुवार को राष्ट्र के नाम पहला संबोधन किया और सबसे पहले ‘अमदावादी’ आइडिया को ही आज़माया। मोदी ने एक साल पहले आज ही के दिन देश की जनता को अहमदाबाद और गुजरात में पाँच दशकों से प्रचलित शब्द ‘जनता कर्फ़्यू’ से अवगत कराया। मोदी ने अपने संबोधन में देशवासियों का आह्वान किया कि वे 22 मार्च, 2020 रविवार को ‘जनता कर्फ़्यू’ रखें। लोग सुबह 7 से रात 9 बजे तक घरों में रह कर ‘जनता कर्फ़्यू’ करें, जिससे देश में कोरोना वायरस संक्रमण को रोका जा सके।

गुजराती जानते थे, देश ने पहली बार जाना

‘जनता कर्फ़्यू’ शब्द से हर गुजराती अवगत था, इसका अर्थ भी जानता था, परंतु देश ने 19 मार्च, 2020 को पहली बार ‘जनता कर्फ़्यू’ और उसके अर्थ को जाना। गुजरात के लोग इस शब्द से इसलिए परिचित हैं, क्योंकि आर्थिक राजधानी अहमदाबाद में वर्ष 1877 से प्रतिवर्ष अषाढ़ी दूज को जमालपुर स्थित जगन्नाथ मंदिर से रथयात्रा निकलती है, जो साम्प्रदायिक सौहार्द के मामले में अति संवेदनशील मानी जाती है, क्योंकि यह रथयात्रा पुराने अहमदाबाद से गुज़रती है, जहाँ अधिकांश मुस्लिम आबादी रहती है। रथयात्रा का लगभग 120 वर्षों का इतिहास साम्प्रदायिक सद्भावना के मामले में अच्छा नहीं रहा, क्योंकि रथयात्रा की आड़ में असामाजिक तत्व हर वर्ष शहर का साम्प्रदायिक माहौल बिगाड़ते रहे। रथयात्रा के दौरान साम्प्रदायिक सद्भावना एवं शांति बनाए रखने के उद्देश्य से ही लगभग 1985 में पहली बार ‘जनता कर्फ़्यू’ का ‘अमदावादी’ आइडिया आज़माया गया, जिसे सफलता मिली और फिर वर्ष-प्रतिवर्ष ‘जनता कर्फ़्यू’ का सिलसिला जारी रहा। मज़े की बात यह है कि अहमदाबाद में ‘जनता कर्फ़्यू’ का आह्वान सरकार या पुलिस नहीं, बल्कि रथयात्रा के रूट पर रहने वाला मुस्लिम समाज करता था, जिसके तहत रथयात्रा के दिन सुबह 7 से रात 9 बजे तक मुस्लिम समाज के लोग घरों में रहते थे, ताकि रथयात्रा शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न हो। यह सिलसिला वर्ष 2000-01 तक जारी रहा।

मोदी ने बदला रथयात्रा का रक्तरंजित इतिहास

अहमदाबाद में ओडिशा के पुरी की भाँति हर अषाढ़ी दूज पर भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकालने का आरंभ वर्ष 1877 से हुआ था, जब देश पर अंग्रेज़ी शासन था। आरंभिक वर्षों में रथयात्रा शांतिपूर्वक सम्पन्न होती थी, परंतु बाद में अंग्रेज़ी षड्यंत्रकारियों तथा असामाजिक तत्वों ने रथयात्रा को अशांति फैलाने का माध्यम बना लिया। वर्ष 1946 की रथयात्रा तो इतनी रक्तरंजित हुई कि साम्प्रदायिक सौहार्द की प्रतिमूर्ति माने जाने वाले अहमदाबाद के दो युवाओं वसंत-रजब को दंगाइयों के समक्ष बलिदान देना पड़ गया। स्वतंत्रता के बाद भी हर वर्ष अहमदाबाद की रथयात्रा के दौरान शांति भंग हो जाती और पूरे शहर में भीषण दंगे छिड़ जाते। पथराव, छुराबाज़ी और आगजनी में अनेक लोगों के जान-माल का नुक़सान होता। देखते ही देखते पूरा अहमदाबाद कर्फ़्यू में क़ैद हो जाता। यह सिलसिला लगातार चलता रहा और दंगाइयों के चलते मुस्लिम समाज बदनाम होने लगा, तो 1985 में मुस्लिम समाज ने स्वयं पहल करते हुए रथयात्रा के दिन ‘जनता कर्फ़्यू’ का आह्वान किया, जिससे रथयात्रा को शांतिपूर्ण सम्पन्न कराने में पुलिस एवं प्रशासन को काफ़ी मदद मिली। आख़िर अक्टूबर-2001 में नरेन्द्र मोदी मुख्यमंत्री बने और वर्ष-प्रतिवर्ष रथयात्रा की शांतिपूर्ण सम्पन्नता सुनिश्चित होती गई। मोदी के मुख्यमंत्री बनने के बाद 2002 में गोधरा कांड के आलोक में भीषण दंगे हुए, परंतु उस वर्ष भी रथयात्रा शांतिपूर्वक सम्पन्न हुई। मोदी ने इसके बाद गुजरात में विकास का ऐसा मंत्र फूँका कि हर गुजराती की समझ में आ गया कि शांति में ही फ़ायदा है और 2002 से 2019 तक रथयात्रा में कभी कोई साम्प्रदायिक दंगा नहीं हुआ, एक पत्थर भी नहीं चला। मोदी ने रथयात्रा के रक्तरंजित इतिहास को पूरी तरह बदल दिया। हालाँकि कोरोना के चलते 2020 में रथयात्रा नहीं निकाली गई थी।

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