Wednesday, March 19, 2025
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CURFEW से जीते, COVID से हारे : 142 वर्षों के इतिहास में पहली बार रद्द हुई अहमदाबाद की जगन्नाथ रथयात्रा

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पुरी में 284 वर्षों बाद नहीं निकलेगी जगन्नाथ रथयात्रा ?

CURFEW से जीते, CORVID से ‘हार’ जाएँगे GOVIND ?

विश्लेषण : कन्हैया कोष्टी
अहमदाबाद (18 जून, 2020)। वही हुआ, जिसकी आशंका थी। कोरोना संक्रण से फैली वैश्विक महामारी कोविड 19 के चलते 142 वर्षों के इतिहास में पहली बार अहमदाबाद में 23 जून को निकलने वाली भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा रद्द कर दी गई है
आज उच्चतम् न्यायालय (SC) से श्रद्धालुओं को झटका देने वाला निर्णय आया। सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना संक्रमण से फैली वैश्विक महामारी कोविड 19 को देखते हुए पुरी में इस साल जगन्नाथ रथयात्रा निकालने पर रोक लगा दी। इसके साथ ही 284 वर्षों से निकल रही रथयात्रा की परंपरा इस वर्ष टूटने की आशंका पैदा हो गई है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को देखते हुए लग ही रहा था कि अहमदाबाद में भी इस वर्ष अषाढ़ी दूज को निकलने वाली ऐतिहासिक 142वीं रथयात्रा नहीं निकल पाएगी, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने पुरी में केन्द्र सरकार तथा ओडिशा सरकार के श्रद्धालुओं के बिना रथयात्रा निकालने देने की बिनती को भी अस्वीकार कर दिया। ऐसे में अहमदाबाद में 142वीं रथयात्रा, जो कोरोना हॉटस्पॉट क्षेत्रों यानी पुराने अहमदाबाद से गुज़रती है, उसे निकालना अधिक जोखिकारक था। कदाचित इसीलिए गुजरात सरकार ने समय रहते यह निर्णय कर लिया कि अहमदाबाद में इस बार रथयात्रा नहीं निकलेगी।

जगन्नाथ क्षमा नहीं करेंगे : CJI बोबडे

इससे पहले आज सुबह सुप्रीम कोर्ट में केन्द्र (नरेन्द्र मोदी) सरकार एवं ओडिशा (नवीन पटनायक) सरकार दोनों ने ही पूरा ज़ोर लगाया कि रथयात्रा परंपरा के अनुसार निकले। केन्द्र सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एससी से रथयात्रा पर प्रतिबंध न लगाने की अपील करते हुए बिनती की श्रद्धालुओं के बिना, सोशल डिस्टैंसिंग व सभी नियमों का पालन करते हुए रथयात्रा निकालने की अनुमति दी जाए।
इस पर प्रधान न्यायाधीश (CJI) न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबडे ने कहा, ‘हमारे पास बताने के लिए काफी अनुभव है कि यदि हमने धार्मिक गतिविधि को स्वीकृति दी, तो वहाँ भीड़ इकट्ठा होगी। यदि ऐसा हुआ, तो भगवान जगन्नाथ हमें क्षमा नहीं करेंगे’। सीजेआई की इस टिप्पणी के आगे केन्द्र-ओडिशा सरकार निरुत्तर हो गईं।
ओडिशा के एक स्वैच्छिक संगठन (NGO) ओडिशा विकास परिषद् ने पुरी में रथयात्रा के आयोजन पर रोक लगाने की मांग करने वाली जनहित याचिका दायर करते हुए कहा था कि रथयात्रा से कोरोना संक्रमण के फैलने की आशंका बढ़ जाएगी। इसी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने पुरी की रथयात्रा पर रोक लगाई है।

टूट जाएगी अहमदाबाद की रथयात्रा की अखंड परंपरा

अब बात करते हैं देश की दूसरी सबसे चर्चित अहमदाबाद की जगन्नाथ रथयात्रा की। देश के सबसे बड़े न्यायालय के देश की सबसे बड़ी, भव्य, प्राचीन-पुरातन, पौराणिक पुरी की रथयात्रा पर रोक लगाने के बाद प्रश्न यह उठ रहा था कि क्या अहमदाबाद में भी रथयात्रा की अखंडता भंग होगी ? एससी के निर्णय के बाद क्या अहमदाबाद में भी रथयात्रा के निकलने पर संकट आ सकता है ? आशंका सही सिद्ध हुई और 142 वर्षों के इतिहास में पहली बार अहमदाबाद में अषाढ़ी दूज को रथयात्रा नहीं निकलेगी।
इससे पहले जगन्नाथ मंदिर के ट्रस्टी महेन्द्र झा ने भव्य भारत न्यूज़ (बीबीएन) से विशेष बातचीत में कहा कि कोरोना संक्रमण के मामले में ओडिशा के मुक़ाबले गुजरात तथा पुरी के मुक़ाबले अहमदाबाद की स्थिति अधिक ख़राब है। झा के कथन से भी संकेत मिल ही गया था कि रथयात्रा रद्द होगी।

141 वर्षों से अक्षुण्ण थी अहमदाबाद की रथयात्रा

अहमदाबाद में वर्ष 1878 में पहली रथयात्रा निकली थी और आज तक सैंकड़ों चुनौतियों के बीच भी रथयात्रा कभी अवरुद्ध नहीं हुई। यही कारण है कि इस वर्ष शहर में 142वीं रथयात्रा निकलने वाली है। वैसे 2001 में निकली 123वी रथयात्रा तक अहमदाबाद की चर्चा केवल गुजरात तक सीमित रहती थी। अक्टूबर-2001 में नरेन्द्र मोदी मुख्यमंत्री बने। फरवरी-2002 में गोधरा कांड और गुजरात दंगे हुए और इसके साथ ही अहमदाबाद की 2002 की 124वीं रथयात्रा पूरे देश में चर्चा के केन्द्र में आ गई।
2002 में गुजरात दंगों के चलते ऐसा दूसरी बार हुआ कि जब अहमदाबाद की ऐतिहासिक रथयात्रा पर रोक लगाने की मांग की गई, परंतु मंदिर प्रशासन इसके लिए कतई तैयार नहीं था। वैसे गुजरात की तत्कालीन नरेन्द्र मोदी सरकार भी नहीं चाहती थी कि अहमदाबाद में नगरोत्सव के रूप में आयोजित होने वाली तथा लगातार 123 वर्षों से निकलने वाली 124वीं रथयात्रा न निकले। इसलिए 124वीं रथयात्रा शांतिपूर्वक सम्पन्न हुई।

जब कर्फ्यू तोड़ निकली 108वीं रथयात्रा

पुरी की पौराणिक रथयात्रा तो विधर्मियों के आक्रमण के कारण खंडित हो चुकी है। यद्यपि आदि शंकराचार्य ने इसका पुनरारंभ कराया। तब से यानी 284 वर्षों से रथयात्रा लगातार निकल रही है, परंतु अहमदाबाद की ऐतिहासिक रथयात्रा का अपना अलग ही धार्मिक, ऐतिहासिक व सामाजिक महत्व है। यही कारण है कि अहमदाबाद में हर वर्ष निकलने वाली रथयात्रा के साथ उसकी संख्या भी दर्शाई जाती है।
1878 से लेकर 2001 तक अहमदाबाद की रथयात्रा में कई बार साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल बनी, तो कई बार इसके कारण साम्प्रदायिक हिंसा भी हुई, परंतु मोदी के मुख्यमंत्री बनने के बाद यानी 2002 से रथयात्रा में कोई अप्रिय घटना नहीं घटी। थोड़ा पीछे चलें, तो हम पाते हैं कि 1985 में अहमदाबाद की रथयात्रा की अखंडता संकट में आ गई थी।
गुजरात में आरक्षण विरोधी आंदोलन साम्प्रदायिक हिंसा में बदल गया था, जिसके चलते तत्कालीन कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री माधवसिंह सोलंकी ने अहमदाबाद में रथयात्रा निकालने पर रोक लगा दी थी। इसके साथ ही यह तय माना जा रहा था कि अहमदाबाद में अषाढ़ी दूज 20 जून, 1985 को 108वीं रथयात्रा नहीं निकलेगी और इसकी अखंडता भंग हो जाएगी।
उधर सरकार के प्रतिबंध के पश्चात् भी जगन्नाथ मंदिर के तत्कालीन महंत रामहर्षदास महाराज ने दृढ़ संकल्प व्यक्त किया कि 108वीं रथयात्रा निकल कर ही रहेगी। इस पर राज्य सरकार ने मंदिर क्षेत्र सहित समग्र पुराने अहमदाबाद में कर्फ्यू लगा दिया, जहाँ से रथयात्रा गुज़रती है, परंतु 20 जून को मंदिर से निकले हाथियों ने जब पुलिस की गाड़ियाँ उलट दीं, तो सरकार 108वीं रथयात्रा के रास्ते से हट गई और इस प्रकार रथयात्रा की परंपरा अक्षुण्ण रही।
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