महाराष्ट्र। एनसीपी (शरद पवार गुट) के नेता जितेंद्र आव्हाड ने फिर विवादित बयान देकर जहर घोलने का पुरजोर प्रयास किया है। इनका बोलना “सनातन ने देश को बर्बाद किया…” इनकी ही पार्टी के गले की फाँस बन गया है। इस बयान की भाजपा सहित हर वर्ग ने जमकर खिलाफत की और इसे ओछी राजनीति करार दिया है।
राजनीति के लिए कुछ भी बोलना नेताओं का भले ही रोज का काम हो, मगर बेतुके बयानों से देश का माहौल और सदभावना खराब होती है, ये बात आजादी के बरसों बाद भी दल और नेता समझ नहीं सके हैं। इसी रास्ते पर चलते हुए महाराष्ट्र में शरद पवार गुट के नेता जितेंद्र आव्हाड ने सनानत धर्म को लेकर विवादित बयान दिया है, जो इनकी मानसिक और राजनीतिक स्तरहीनता को साबित करता है। इस बयान ने देश के बिहार और महाराष्ट्र की सियासत में फिर तूफान मचा दिया है, क्योंकि बिहार में शीघ्र ही विधानसभा के चुनाव होना है। वहाँ भी भाजपा इसे सामने रखेगी, क्योंकि कांग्रेस सहित इण्डिया का गठबंधन है।
◾बनेगा चुनावी मुद्दा-
आगामी समय में महाराष्ट्र में भी पालिका के चुनाव में यह मुद्दा भाजपा अवश्य उठाएगी। समझ में नहीं आता कि आखिर जितेंद्र आव्हाड जैसे नेता ‘धर्म’ पर बोलते ही क्यों हैं ? इनके विवादित बयान पर भारतीय जनता पार्टी ने प्रखरता से हमला बोला है और कड़ी निंदा की है। भाजपा नेता राम कदम ने शरद पवार गुट के नेताओं पर हिंदू धर्म को बदनाम करने का आरोप लगाया और कहा कि शरद पवार गुट के नेता विकृत शास्त्रों का अध्ययन कर हिंदू धर्म को बदनाम कर रहे हैं। अब इस विवाद ने विपक्ष और सत्तारूढ़ दल के बीच तनाव को और बढ़ा दिया है।
◾’शिवाजी’-‘मनुस्मृति’ तक पहुंचे-
विधायक जितेंद्र आव्हाड ने कहा कि “सनातन धर्म ने भारत को बर्बाद किया” और इसकी विचारधारा को ‘विकृत’ करार दिया। राजनीतिक विडंबना देखिए कि महाराष्ट्र के ठाणे में दिए इस बयान में उन्होंने सनातन धर्म को छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक से इनकार, संभाजी महाराज की बदनामी, ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले पर हमले और डॉ. बी.आर. आम्बेडकर के साथ भेदभाव जैसे ऐतिहासिक अन्यायों का जिम्मेदार ठहराया। इन्होंने कहा कि सनातन धर्म ने शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक रोका, ज्योतिराव फुले और भीमराव आम्बेडकर पर ज़ुल्म किए। यह भी कहा कि वो हिंदू धर्म को मानने वाले हैं, ना कि सनातनी सोच के हैं। इन्होंने मनुस्मृति को भी निशाने पर लेते हुए कहा कि यही सनातनी परंपरा है, जिसने उसे जन्म दिया और यही सोच आम्बेडकर के साथ भेदभाव की जड़ थी।
◾वर्चस्व की ‘सस्ती’ राजनीति-
जितेंद्र आव्हाड ने अपने बयान से न सिर्फ सनातन धर्म को, बल्कि करोड़ों भारतीयों की आस्था को लहूलुहान करने की कोशिश की है।इनका ऐसा बोलना एक तरफ जहां उनकी राजनीतिक सोच के खोखलेपन को उजागर करता है, वहीं उनके वैचारिक दिवालिएपन का भी प्रमाण है। यह पहला मौका नहीं है, जब जितेंद्र आव्हाड ने सनातन धर्म को निशाना बनाकर सस्ती सुर्खियाँ बटोरने की कोशिश की है। बार-बार सनातन के विरुद्ध ज़हर उगलना उस मानसिकता को दर्शाता है, जो वोटबैंक की राजनीति में धर्म और संस्कृति को जानबूझकर डाल रहे हैं।
◾उकसावे की रणनीति सम्भव-
जहरबाज नेताओं को समझ लेना चाहिए कि सनातन धर्म कोई राजनीतिक संस्था नहीं, बल्कि हजारों वर्षों से चली आ रही एक ऐसी जीवन-शैली है, जिसने “वसुधैव कुटुम्बकम्’ और ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ जैसे विचारों से पूरी मानवता को राह दिखाई है। यह धर्म कभी किसी पर थोपे जाने की भावना से नहीं चला और पला, बल्कि सहिष्णुता, सह-अस्तित्व और सत्य की खोज में विश्वास रखता है। ऐसे धर्म को “देश बर्बाद करने वाला” कहना केवल नासमझी नहीं है, बल्कि सोची-समझी उकसावे की रणनीति भी है। ग्रंथों से दूर जितेंद्र आव्हाड को शायद यह नहीं मालूम कि जिस संविधान का सहारा लेकर वे अपनी बात कह रहे हैं, वही संविधान भारत की सनातन विरासत से प्रेरित अनेक मूल्यात्मक सिद्धांतों को आत्मसात करता है।
असल में, इस राज्य में एनसीपी का राजनीतिक अस्तित्व संकट में है तो ध्यान भटकाने के लिए ऐसे भड़काऊ बयान दे रहे हैं, लेकिन ये भूल गए हैं कि यह देश अब जाग चुका है। जनता समझती है कि “सनातन” को गाली देना, हिंदू संस्कृति को कोसना और तुष्टिकरण की राजनीति करना अब पुरानी रणनीति हो चुकी है।
◾पार्टी और कोर्ट लें संज्ञान-
जितेंद्र आव्हाड ने अपने बयान से देश की एकता, अखंडता और सांप्रदायिक सौहार्द को चोट पहुंचाने का प्रयास किया है। इसलिए उन्हें देश, सनातन संस्कृति और उन करोड़ों लोगों से माफ़ी मांगनी चाहिए, जिनकी भावनाओं को ठेस पहुँचाई है, साथ इनके दल और कोर्ट को भी ऐसे जहरीले बयान पर
स्वत: संज्ञान लिया जाना चाहिए।