दिल्ली। 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया के उपयोग पर ऑस्ट्रेलिया ने बड़ा साहसिक कदम उठाया है। इससे बच्चों का भविष्य बचाया जा सकेगा। अब भारत से उम्मीद है कि 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स (जैसे-यूट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम, टिकटॉक, स्नैपचैट वगैरह) पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का फैसला लिया जाए। ऑस्ट्रेलिया सरकार के इस निर्णय के बाद यह महत्वपूर्ण सवाल उठा है कि क्या भारत भी बच्चों की डिजिटल सुरक्षा के लिए इसी तरह का साहसिक फैसला ले सकता है ?
देखा जाए तो यह दुनिया में अपनी तरह का पहला सख्त कानून है, जिसमें कंपनियों से अपेक्षा की गई है कि वे कम उम्र के बच्चों को अपने प्लेटफॉर्म से दूर रखें। दूसरे रुप में इनको चेताया भी है कि ऐसा नहीं हुआ तो उनके ऊपर भारी जुर्माना लगाया जा सकता है।
◾भारत में कोई सीधा प्रतिबंध नहीं-
जानकारी के मुताबिक फिलहाल भारत में ऐसा कोई सीधा प्रतिबंध नहीं है, जिससे इन्हें देखने से बचा जा सके। भारत सरकार ने डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट के ड्राफ्ट नियमों में यह प्रावधान किया है, कि 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे माता-पिता की ‘वेरिफायबल कंसेंट’ के बिना सोशल मीडिया पर अकाउंट नहीं बना पाएंगे, लेकिन ऑस्ट्रेलिया की तरह ‘पूर्ण प्रतिबंध’ की दिशा में भारत ने अब तक कोई कदम नहीं उठाया है। इसके लिए सरकार ने कुछ अश्लील साइट पहले बंद भी की है। आईटी मंत्रालय के अनुसार भारत जैसे देश में जहाँ ऑनलाइन शिक्षा और डिजिटल सामग्री पर बच्चों की निर्भरता तेजी से बढ़ी है, वहाँ पूर्ण प्रतिबंध व्यावहारिक नहीं है और इस पर समाज में गंभीर बहस की आवश्यकता है। यानी फिलहाल सब कुछ देखो, कोई रोक नहीं है।
◾कोई उपाय बहुत आवश्यक-

आमजन, पुरानी पीढ़ी सहित अनेक विशेषज्ञों का मत है कि बच्चों पर सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव, साइबर बुलिंग, मानसिक स्वास्थ्य संबंधी जोखिम और डेटा की सुरक्षा-ये सभी ऐसे मुद्दे हैं, जो भारत के लिए भी विशेष चुनौती हैं। वैसे, यह भी सच है कि भारत की सामाजिक, डिजिटल और शैक्षिक परिस्थितियाँ ऑस्ट्रेलिया से अलग हैं। यहाँ पर प्रतिबंध से बच्चों की ऑनलाइन शिक्षा, करियर गाइडेंस और डिजिटलीकरण की रफ्तार भी प्रभावित हो सकती है, फिर भी कोई रास्ता तो निकालना पड़ेगा। कई लोग मानते हैं कि बच्चों को सुरक्षित ऑनलाइन वातावरण देने के लिए ‘सख्त निगरानी और पेरेंटल कंसेंट’ अधिक व्यावहारिक बात है, तो कुछ ऑस्ट्रेलिया जैसे कड़े कानून की वकालत करते हैं, क्योंकि अभी तो मन का काम यानी देखना जारी है।
◾मेरी मर्जी… रील बनाऊं या…-
इंटरनेट आज हमारे समाज की आभासी वास्तविकता और बड़ी बन चुका है। इसके चलते मोबाइल, टैबलेट और इंटरनेट की पहुँच बच्चों तक इतनी सहज हो चुकी है कि मात्र 4 साल का बच्चा भी यू-ट्यूब पर कार्टून देख सकता है और 8-10 साल का बच्चा इंस्टाग्राम पर रील्स बनाना समझता एवं जानता है। ऐसी स्थिति में ऑस्ट्रेलिया सरकार द्वारा लिया गया फैसला बहुत साहसिक है, और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को सुरक्षित रखने की दिशा में ऐतिहासिक कदम है।
◾एकराय जरूरी-
भारत में फिलहाल ऑस्ट्रेलिया जैसी प्रतिबंधात्मक नीति लागू होने के आसार इसलिए नहीं दिखाई देते हैं कि इस पर भी पहले एकमत होना पड़ेगा। बच्चों की डिजिटल सुरक्षा और सोशल मीडिया पहुंच को नियंत्रित करने की बहस जरूर तेज हो गई है, पर जब तक समाज, नीति-निर्माता और अभिभाव मिलकर तत्काल समाधान पर गंभीर मंथन नहीं करेंगे और बचपन-किशोर वयता को दूषित होने से नहीं रोकेंगे, तब तक कोई संतुलित नीति का लागू हो पाना कठिन होगा। हालाँकि, वास्तविक रुप से यह कानून लाया जाना बहुत आवश्यक है। यह कदम बच्चों को ऑनलाइन दुनिया के नकारात्मक प्रभावों से बचाने के लिए उठाना भविष्य की महती जरूरत है।