अहमदाबाद। सृष्टि में पंचमहाभूत हैं; जिनमें पृथ्वी, जल, आकाश, अग्नि एवं वायु का समावेश होता है; परंतु क्या आप जानते हैं कि जिसे हम पृथ्वी कहते हैं, उसका नाम पृथ्वी कैसे पड़ा ? भूमि, जल एवं अग्नि को धारण करने वाले तथा वायु, आकाश व अंतरिक्ष के बीच धुरि पर घूमने वाले गोले को संस्कृत एवं हिन्दी सहित अधिकांश भारतीय भाषाओं में पृथ्वी क्यों कहा जाता है ? इतना ही नहीं; वर्तमान विश्व में 195 देशों में से भारत में जन्म लेना क्यों देवताओं से भी अधिक सौभाग्यशाली माना गया है ? भारतीय होना क्यों गर्व की बात है ?
22 अप्रैल को विश्व पृथ्वी दिवस मनाया जाता है और इसी उपलक्ष्य में आज हम आपके समक्ष भारतीय पुरातन संस्कृति तथा भारतीय दर्शन की अवधारणा के अनुसार इस पृथ्वी से जुड़े कई रहस्यों को उजागर करने जा रहे हैं।
अनादिकाल से चली आ रही सनातन भारतीय संस्कृति की पूंजी 18 पुराण, 4 वेद और उसकी उपनिषदीय शाखाएँ हैं; जिनमें विज्ञानयुक्त ज्ञान का भंडार पड़ा हुआ है। इन पुराणों-शास्त्रों में भव्य भारत की झलक है। आज जब पूरी दुनिया पृथ्वी के महत्व को समझने-समझाने के उद्देश्य से विश्व पृथ्वी दिवस (World Earth Day) मना रहा है, तब हम बात करने जा रहे हैं 18 पुराणों में एक एक विष्णु पुराण की; जिसमें पृथ्वी से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्रदान करता है।
‘विष्णुपुराण’ में पृथ्वी, भारत, भारतीय होने के महत्व तथा अर्थ सहित प्रचूर ज्ञान जानने को मिलता है।
वर्तमान आधुनिक युग में हमें आश्रय देने वाले स्थान को हम धरती, भूमि, ज़मीन या लैंड, गाँव, तहसील, क्षेत्र, उप नगर, नगर, महानगर, जिला, राज्य, राष्ट्र या दुनिया कहते हैं; परंतु जब हम उसी आश्रय स्थान को पृथ्वी (EARTH) कह देते हैं, तो सारे छोटे-बड़े पर्याय समाप्त हो जाते हैं और हम एक विराट विश्व का हिस्सा बन जाते हैं; परंतु क्या आप जानते हैं कि यह पृथ्वी शब्द आया कहाँ से ? अंतरिक्ष में अपनी धुरि पर घूमने वाले इस गोल गोले को पृथ्वी ही क्यों कहा जाता है ?
धरती के प्रथम राजा पृथु से उत्पन्न हुआ पृथ्वी शब्द
विष्णु पुराण की रचना ऋषि पराशर ने की थी। 18 पुराणों में सबसे छोटे विष्णु पुराण में 7000 श्लोक हैं। विष्णु पुराण में सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर कलियुग तक की बातें हैं, तो विशेष रूप से विष्णु पुराण भगवान विष्णु के दस अवतारों पर आधारित है। हम जिस धरती पर रहते हैं, उसे पृथ्वी क्यों कहा जाता है ? इसका उल्लेख विष्णु पुराण में है। विष्णु पुराण के अनुसार साधु शीलवान अंग के पुत्र का नाम वेन था, जो दुष्ट वृत्ति का था। त्रस्त ऋषियों ने हुंकार-ध्वनि से वेन को मार डाला। वेन नि:संतान ही मर गया। उस समय अराजकता के निवारण के लिए वेन की भुजाओं का मंथन किया गया, जिससे स्त्री अर्चि एवं पुरुष पृथु का जन्म हुआ। दोनों पति-पत्नी हुए। अर्चि व पृथु को भगवान विष्णु व लक्ष्मी का अंशावतार माना जाता है। पृथु ने धरती को समतल कर उसे उपज योग्य बनाया और उस पृथु के नाम पर ही धरती का नाम पृथ्वी रखा गया।
भारत में अवतरण व भारतीय होना परम सौभाग्य क्यों ?
विष्णु पुराण में भारत वर्ष को कर्मभूमि कहा गया है।
‘इत: स्वर्गश्च मोक्षश्च मध्यं चान्तश्च गम्यते।
न खल्वन्यत्र मर्त्यानां कर्मभूमौ विधीयते ॥ [2]’
विष्णु पुराण के उपरोक्त श्लोक का अर्थ है, ‘भारत भूमि से ही स्वर्ग, मोक्ष, अंतरिक्ष या पाताल लोक जाया जा सकता है। भारत देश के अतिरिक्त किसी अन्य भूमि पर मनुष्यों के लिए कर्म का कोई विधान नहीं है।’
विष्णु पुराण में भारतीय कर्मभूमि की भौगोलिक रचना का उल्लेख करने वाला श्लोक है
‘उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् ।
वर्ष तद्भारतं नाम भारती यत्र संतति ॥ [3]’
उपरोक्त श्लोक का अर्थ है : ‘समुद्र के उत्तर में एवं हिमालय के दक्षिण में जो पवित्र भूभाग स्थित है, उसका नाम भारत वर्ष है। उसकी संतति भारतीय कहलाती है।’ विष्णु पुराण में भारत भूमि की वंदना करने वाला यह पद भी है :
गायन्ति देवा: किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारत भूमिभागे।
स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते भवन्ति भूय: पुरुषा: सुरत्वात्।
कर्माण्ड संकल्पित तवत्फलानि संन्यस्य विष्णौ परमात्मभूते।
अवाप्य तां कर्ममहीमनन्ते तस्मिंल्लयं ये त्वमला: प्रयान्ति ॥[4]
अर्थात ‘देवगण निरन्तर यही गान करते हैं कि जिन्होंने स्वर्ग और मोक्ष के मार्ग पर चलने के लिए भारत भूमि में जन्म लिया है, वे मनुष्य हम देवताओं की अपेक्षा अधिक धन्य तथा भाग्यशाली हैं। जो लोग इस कर्मभूमि में जन्म लेकर समस्त आकांक्षाओं से मुक्त होकर अपने कर्म परमात्मा स्वरूप श्री विष्णु को अर्पण कर देते हैं, वे पाप रहित होकर निर्मल हृदय से उस अनन्त परमात्म शक्ति में लीन हो जाते हैं। ऐसे लोग धन्य होते हैं।