दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक क्रूरता और दहेज प्रताड़ना जैसे मामलों (IPC की धारा 498 A) में दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी और कार्रवाई पर देशभर के लिए बड़ी राहत का आदेश जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में निचली अदालत इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2022 के दिशा-निर्देशों को पूरे देश में लागू करने का आदेश दिया है।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि अब ऐसे मामलों में पुलिस 2 महीने तक कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करेगी। इस ‘कूलिंग पीरियड’ के दौरान मामला जिले की परिवार कल्याण समिति (Family Welfare Committee – FWC) को भेजा जाएगा, जो मामले की जांच कर रिपोर्ट देगी।
दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि केवल वही मामले FWC को भेजे जाएँगे, जिनमें IPC की धारा 498-A के साथ-साथ कोई क्षति न पहुँचाने वाली धारा 307 और IPC की अन्य धाराएँ शामिल हैं और जिनमें कारावास 10 वर्ष से कम है।
◾यह है मामला-
दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 13 जून 2022 को IPC 498 A के दुरुपयोग को रोकने के लिए यह व्यवस्था दी थी, जो अब सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार पूरे देश में लागू होगी। यह व्यवस्था 2017 में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पर आधारित थी, जिसे 2018 में वापस ले लिया गया था। अब एक बार फिर से इस फैसले के जरिए FWC को पुनः सक्रिय किया गया है, और इसे उपयुक्त प्राधिकारियों द्वारा लागू किया जाएगा। इस फैसले से झूठे मामलों में फंसाए गए व्यक्तियों को बड़ी राहत मिलने की उम्मीद है, वहीं असली पीड़ितों के मामले की निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने की दिशा में भी यह बड़ा महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
◾रहेगी ‘शांति अवधि’-
सर्वोच्च कोर्ट ने कहा है कि जब कोई महिला अपने ससुराल वालों के खिलाफ 498A के तहत घरेलू हिंसा या दहेज प्रताड़ना का केस दर्ज कराए, तो पुलिस वाले उसके पति या उसके रिश्तेदारों को 2 महीने तक गिरफ्तार न करे। कोर्ट ने 2 महीने की अवधि को शांति अवधि (प्राथमिकी या शिकायत दर्ज होने के दो महीने बाद तक) कहा है। उल्लेखनीय है कि अभी तक पुलिस और महिला इस कानून का बड़े स्तर पर दुरूपयोग करते रहे हैं। ऐसे में कानून विशेषग्यों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से इस पर रोक लगेगी।
◾सुप्रीम कोर्ट ने पहले किया था निरस्त-
पूरे मामले में दिलचस्प और खास बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने इसे पहले निरस्त कर दिया था। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा जारी यह दिशा-निर्देश 2017 में राजेश शर्मा एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य मामले में दिए गए फैसले पर आधारित है। दिलचस्प बात यह है कि 2018 में सोशल एक्शन फॉर मानव अधिकार बनाम भारत संघ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ इसे संशोधित कर दिया था, बल्कि इसे निरस्त भी कर दिया था। इस वजह से FWC निष्क्रिय हो गई थी। बहरहाल, इस हालिया फैसले के साथ ही इलाहाबाद हाई कोर्ट के वे दिशा-निर्देश अब सब पर लागू हो गए हैं।