दिल्ली। कांग्रेस के युवराज एवं सूत्रधार राहुल गांधी भारतीय राजनीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की अनेक बार सार्वजनिक रूप से आलोचना कर चुके हैं। इतनी बार की हार और मोदी जी की जीत के बाद भी उनको कोसना बंद नहीं किया जाना आश्चर्यजनक है, क्योंकि राहुल गांधी ने ताल कटोरा स्टेडियम में भी यही किया।
दिल्ली के इस स्टेडियम में कांग्रेस की ओबीसी सेल ने ‘भागीदारी न्याय सम्मेलन’ आयोजित किया। इसमें भी सांसद श्री गांधी ने वही सब कहा, जो वो नरेंद्र मोदी के विरोध में निरंतर कहते फिरते हैं। राहुल गांधी यह आरोप लगाते रहे हैं कि मोदी सरकार सिर्फ कुछ बड़े उद्योगपतियों के लिए काम कर रही है, जबकि आम लोगों की समस्याओं की अनदेखी की जा रही है। इन्होंने महंगाई, बेरोज़गारी, किसानों की स्थिति, ओबीसी-एससी-एसटी अधिकारों और लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्वतंत्रता को लेकर केन्द्र सरकार की फिर आलोचना की, साथ ही जातिगत गणना कराने के लिए स्वयं की पीठ थपथपाई। राहुल गांधी ने पीएम मोदी पर विदेश नीति में विफलता, चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल, तथा पारदर्शिता की कमी जैसे मुद्दों पर भी निशाना साधा, पर अपनी किसी कमी को नहीं स्वीकारा। ऐसा लगता है कि अक्सर बीजेपी और आरएसएस पर ओबीसी और वंचित वर्ग के इतिहास को मिटाने का आरोप लगाने वाले श्री गांधी का सबसे प्रमुख ‘राजनीतिक काम‘ मोदी सरकार की आलोचना करना ही है, जबकि राहुल गांधी की भी कमियाँ है, जो हर चुनाव में कार्यकर्ता और नेता भी देख रहे हैं।
पहले राहुल गांधी ने स्वयं स्वीकार किया है कि उनसे और पार्टी से कुछ गलतियाँ हुई हैं, विशेषकर पिछड़े वर्ग (ओबीसी) के हितों की रक्षा न कर पाने में।
बेहतर हो कि राहुल गांधी श्री मोदी को कोसना छोड़कर अपनी कमियों को दूर करें। राजनीति के लिए विरोध अवश्य करें, पर वो एकतरफा और एक सूत्रीय अभियान नहीं बने, इसकी चिंता कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे एवं राहुल गांधी को अब तो करनी ही चाहिए, जिसमें उनको अनुभव की कमी, कमजोर नेतृत्व, राजनीतिक विरोधियों को नहीं समझना, स्वयं को ताकतवर और चुनौतीपूर्ण नेता के रूप में अभी तक पूरी तरह स्थापित नहीं कर सकना आदि है। इनको मिटाकर ही यह संगठक बन पाएंगे।